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सिद्धांत
गुणठाणा
॥२७॥
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ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र अने अनंत वीर्य ए अनंत चतुष्टय सहित होवा छतां पण भवोपग्राही अघाती। |चार कर्म, बळेल वीज समान रहेल छे, ए गुणठाणे ८५ प्रकृति सत्तामां होय छे. तेमज सशरीरी, सलेशी होवाथी अने योग निमितथी बे समयनी स्थितिवाळो शातावेदनीयनो वंध होय छे. वली ए गुणठाणे ज० अंतर्मुहूर्त अने उ० देशे उणा क्रोड पूर्व सुधी ध्यानांतरिकाए एटले शुक्लध्यानना बीजा बीजा पाया बच्चे होय छे. सयोगीकेवलीने योगनो व्यापार होवाथी सयोगी केवली कहेवाय छे. समयांतर ज्ञान दर्शननो उपयोग होय छे. चौदमा अयोगी केवली गुणठाणाना लक्षण कछ-सयोगी केवली, अंतर्मुहत आयुष्य वाकी रहे त्यारे लेश्यातीत ध्यानमां एकाग्र थवा माटे योगोने कंधे छे तेनो क्रम आ प्रमाणे छे:-प्रथम स्थूल मन वचनना योगने कंधे, पछी स्थलकायाना योगने कंचे, त्यारवाद शुकलथ्याना त्रीजा पाया (सूक्ष्मक्रिय अनिवृत्ति ध्यान)ने प्राप्त करी सूक्ष्म मन, वचनने कंधे छ, पछी सूक्ष्म कायाना योगने कंधे छे. त्यारपछी 'सच्छिन्नक्रिय रूप शुक्लध्याननाल चोथा पायामां तल्लीन रही पंच लघु अक्षर ( अ, इ, उ, ऋ, ल.)ना उच्चार मात्र काल जेटली स्थितिवाएं।
शैलेशीकरणरूप' चोदमुं गुणठागुं प्राप्त थाय छे, अने ए गुणठाणाना छेल्लाथी पहेलाना समयमा ७२ प्रकृनिने खपावीने चरम ( छेल्ले) समये १३ प्रकृतिने खपावे. एम सर्व कर्मनी प्रकृतिओनो सर्वथा क्षय करी, सर्व संगथी। मुक्त थइ एक समयमा अन्य आकाश प्रदेशले स्पा विना मुक्तिने पामे. पूर्व प्रयोगथी, धनुष्यमुक्त वाणवत् तथा गति (उर्ध्वगति) परिणामी, अग्निशिखावत् निर्लेप-असंगपणाथी तुंबीवत् अने बंधनमुक्त थबाथी एरंड
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