________________
गुणठाणा
सिद्धांतरहस्य ॥५५॥
॥५५॥
MASALAM
कहे छः-प्रत्याख्यानावरणीय कषायना अभावधी सर्व सावध योगथी सर्वदा विरतिभाव होय छे परंतु योगनी चपलता अने कषायादि प्रमादथी अशुभयोग तथा कृष्णादि लेश्या परिणमे के तेथी 'प्रमत्त संयत' कहेवाय छे. हवे सातमा अप्रमत्त संयत गुणस्थानना लक्षण कहे छ:-जे संयत, पांच प्रकारना प्रमाद-मद, विषय, कषाय, निद्राने विकथा-रहित अने विशुद्ध चारित्रवालो होय ते 'अप्रमत्त संयत कहेवाय' ए गुणठाणे विशुद्ध लेश्या अने अध्यवसायनी निर्मळता होय छे. हवे आठमा अपूर्वकरणगुणठाणाना लक्षण कहे के:-करण ते जीवनो परिणाम विशेष, ते पूर्षे कदी पण आवेल न होय तेवा उत्तम परिणामनी धाराने 'अपूर्वकरणगु०' कहीए वली ए गुणठाणानुं 'नियहि बादर' नाम होवाथी ए गुणठाणाने प्राप्त थयेला जीधोना अध्यवसायस्थानो त्रण कालनी अपेक्षाए असंख्य लोकाकाश प्रमाण होय छे, तेने 'निवृत्ति' कहे छे. उपरना गुणठाणानी अपेक्षाण आठमे गुणठाणे कषाय पण बादर (स्थूल ) होय छे, तेथी निवृत्त बादर पण कहेवाय छे. वली ए गुणठाणे परिणामनी विशेष विशुद्धिने लइने १ स्थितिघात, २ रसधाल, ३ गुणश्रेणि, ४ गुणसंक्रम अने अपुन:स्थिति ए पांच कार्य थाय छे, आ गुणठाणाथी श्रेणिनो प्रारंभ थाय छे. श्रेणिना बे भेद छः-१ उपशम श्रेणि, अने २ क्षपक श्रेणि, उपशम श्रेणिथी क्षपक श्रेणिनी विशुद्धि विशेष होय छे. नवमा अनिवृत्ति बादर गुणठाणाना लक्षण कहे छे
१ कृष्णादि लेश्यामां वर्तता जीवोने प्रमत्त संयतादि गुणठाणानी प्राप्ति न थाय पण 'पर्वप्रतिपन्न' ने मंद अध्यवसायवाली अशुभ लेश्या होय छे. लेश्याना अध्यवसाय स्थाननी विचित्रता छे.