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दंडक
सिद्धांतरहस्य ॥४०॥
॥४०॥
समुन्ने नथी. अज्ञान चे मतिअ-श्रुत अ०, युगलियाने बे ज्ञान, ने बे अज्ञान अने कर्मभू० मनुष्यने पांच ज्ञान ने |त्रण अज्ञान. योग समु. नेत्रण औदा०, औदानो मिश्र ने कार्मणका०, युगलियाने इग्यार-चार मनना, चार
वचनना ने त्रण कायाना औदा० औदानो मिश्र ने कार्मणका० अने कर्मभूमिना मनुष्योने पन्नर योग. उप| योग, समुन्ने चार बे अज्ञान ने बे दर्शन. युगलियाने छ बे ज्ञान बे अज्ञान ने बे दर्शन. कर्मभू० मनुष्यने बार उपयोग. तेमज आहार-ज. ने उ. छ दिशानो ले, ते पण त्रण प्रकारनो ओज, रोम ने कवल. ते सचित्त,
अचित्त ने मिश्र आहार ले. उववाय ते समु० मां पृथवी, पाणी, वनस्पति, व्रण विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय |ने मनुष्य ए आठ दंडकना आवीने उपजे. युगलियामां तिर्यंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य ए बे दंडकना उपजे अने कर्मभू० मनुष्यमां बावीश दंडकना उपजे, तेउवायु वर्जिने. स्थिति, समुनी ज• ने उ. अंतर० ने गर्भज मनुप्यनी आराना प्रमाणे जाणवी. पहेलो आरो बेसतांत्रण पल्योपमनी, उत्तरतांबे पल्यनी. बीजो आरो बेसतांबे | पल्यनी ने उतरतां एक पल्यनी. बीजो आरो बेसतां एक पल्यनी, उतरतां क्रोडपूर्वनी. चोथो आरो बेसतां क्रोड पूर्वनी, उतरतां सो वर्ष झाझेरानी. पांचमो आरो बेसतां सो वर्ष झाझरानी, उतरतां वीश वर्षनी. छट्ठो आरो बेसतां वीश वर्षनी, उतरतां सोळ वर्षनी. ए अवसर्पिणी कालआश्रयी अने उत्सर्पिणी कालआश्रयी विपरीत जाणवी. हैमवत ने हैरण्यवतमा एक पल्यनी, हरिवर्ष ने रम्यक वर्षमां बे पल्यनी, देवकुरु-उत्तर कुरुमांत्रण पल्यनी.
ए प्रायिक बचन सो वर्षथी विशेष आयुष्यनो संभव है.