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सिद्धांत
दंडक
रहस्य
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॥३६॥
॥३६॥
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उपयोग बेइंद्रिय तेइंद्रिय ने पांच-वे ज्ञान, बे अज्ञान ने एक अचक्षुदर्शन. चउरिंद्रिय ने छ उपयोग एक चक्षुदर्शन वध्यु. तेमज आहार-छ दिशानो ले, ते ओज, रोम ने कवल आहार ले, ते पण सचित्त अचित्त ने मिश्र आहार ले, उववाय ते आवीने उपजे विकलेंद्रियमां पांच स्थावर, त्रण विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य ए दश दंडकना उपजे. स्थिति, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय ने चउरिंद्रियनी ज• अंत ने उ० चार वर्षनी, उगणपचास दिवसनी अने छ मासनी. समोहया-असमोहया वे मरण होय. चवण ते चवीने विकलेंद्रिय, पांच स्था० त्रण विक०, तिर्यंच पं० अने मनुष्य ए दश दंडकमां जाय. गति-आगति ते विकलेंद्रिय, तिर्यंच ने मनुष्य ए ये गतिमां जाय. एमां आवे पण ए बे गतिना. प्राण बे इंद्रियने छ बे इंद्रियना बे प्राण, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छ्वास ने आयुष्य, प्राण तेइंद्रिय ने सात प्राण-नासिका वधी. चउरिंद्रिय ने आठ प्राण-चक्षु वधी. इति त्रण विकलेंद्रियनो दंडक समाप्त.
हवे वीशमो तिर्यंचपंचेंद्रियनो दंडक कहे छे:-पांच तिर्यंच समुच्छिम ने शरीर त्रण औदा, तै० ने कार्मण शरीर. तिर्य० पंचें गर्भज ने शरीर चार वैक्रेय वध्युं जलचर समुच्छिम अने गर्भजनी अवगाहना ज० अंगु० असं० ने उ० एक हजार योजननी. स्थलचर समुच्छिमनी ज० अंगु० असं० ने उ. प्रत्येक गाउनी, गर्भजनी
स्पर्शन-रसनेंद्रिय. २ उपर कहेली जलचरनी अवगाहना स्वयंभूग्मण समुदना मच्छोनी होय. लवणमा पाँचसोनी, कालोदधिमा सातसो योजननी होय. काकीना समुद्रमा ओळी अवगाहन। होय छे. ३ चतुष्पद-चार पगवाला,
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