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________________ सिद्धांतरहस्य ॥२१२॥ लेश्या विचार २१२॥ रार्द्ध० २ नवमीवप्र विजय ३ विजयापुरी नगरी ४ देवसेन राजा पिता ५ उमा माता ६ गजलंछन ७ सूरिकता स्त्री ८ शेष पूर्ववत् ॥ ओगणीशमा देवयशा स्वामी १ पश्चिम पुष्कराई २ चोवीशमीवत्स विजय ३ सुसीमा४ पुरी नगरी ४ संवरभूती राजा पिता ५ गंगावती माता ६ चंद्रलंछन ७ पदमावती स्त्री ८ शेष पूर्ववत् ॥ वीशमा अजीतवीर्य स्वामी १ पश्चिम पुष्करार्द्ध० २ पचीशमी नलिनावती विजय ३ अयोध्या नगरी ४ राजपाल राजा पिता ५ कनकावती माता ६ शंखलंछन ७ रत्नमाला स्त्री ८ शेष पूर्ववत् इती विहरमान जिन पोडशद्वार वर्णनं समाप्तं ॥ अथ लेश्या-विचार-जेना वडे आत्मा कर्मथी लेपाय ते लेश्या. अथवा कृष्णादि द्रव्यना संयोगथी स्फटिक रत्ननो जेम अन्य नवीन परिणाम थाय छे, तेम योगांतर्गत कृष्णादि परमाणु द्रव्यनी प्रधानताथी जे आत्मानो परिणाम थाय छे ते लेश्या कहेवाय छे. ज्यांसुधी योग होय छे, त्यांसुधी लेश्या होय छे अने ज्यां योगनो अभाव होय छे त्यां लेश्या होती नथी. माटे आ अन्वय-व्यतिरेक सबंधथी लेश्यान कारण योग छे. जेटला प्रमाणमां कषायनो सदभाव होय तेटला प्रमाणमां कषायोने आ लेश्या द्रव्यो सहायक बनीने प्रगट करे छे. केमके योगांतर्गत अन्य द्रव्यो पण कषायने उद्दीपन (बलवान् ) करवाने समर्थ थाय छे. जेमके पित्त द्रव्यमां क्रोधने उद्दीपन करवानो गुण देखाय छ क्रोधातुर माणसनी अति पित्त प्रकृति होय छे. वळी मदिरा २ कारणना सद्भावे कार्यनो सदभाव ते अन्वय अने कारणना अभाचे कार्यनो अभाव ते व्यतिरेक.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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