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सिद्धांतरहस्य
नियंठा विचार ॥१७६॥
मानी अस०, ६ का वदि १नी अस०, ७ चैत्र सुदि पुनमनी अस०, ८ चै० वदि १नी अस०,९-१२ प्रभातनी बे घडी, मध्यान्हनी बे घडी, संध्याकालनी बे घडी अने मध्यान्हरात्रिनी बे घडी असझाय. ए १२ असझाय, ठाणांगने चोथे ठाणे अने छेद सूत्रमा कहेल छे. ए ३२ असझायमां जो सिद्धांतनुं वांचq भणQ (सझाय) करे तो आशातना लागे देवादिकनो उपद्रव थाय अने तीर्थकरनी आज्ञानो भंग थाय. इति ३२ असझाय समाप्त.
श्री नियंठाविचार-पन्नवणा वेय रागे, कप्प चरित्त पडिसेवणानाणे; तित्थे लिंग सरीरे, खिते काले गइ संजम निगासे॥१॥जोगुवओगे कसाए, लेसा परिणाम बंध वेदेय; कम्मो दीरण उवसं, पजण सन्नाय आहारे॥२॥ |भव आगरिसे कालं,-तरेय समुग्धाय खित्त फुसणाय; भावे परिमाणेविय, अप्पा बहुयं (तं ?) नियंठाणं ॥३। ए
३६ द्वारनी गाथाओ कही. पहेलं प्रज्ञापना द्वार-ते निर्ग्रथना छ भेद १ पुलाक, २ बकुस, ३ प्रतिसेवना कुशील, | ४ कषायकुशील, ५ निग्रंथ, अने ६ स्लातक. पुलाक ते सदुसा धान्य सहित पूळा जेवो. बकुस ते सदुस धान्य
जेवो. प्रतिसेवणाकु. ते मशल्या धान्य जेवो. कषायकु० ते उपण्या धान्य जेवो. निग्रंथ ते कणकी सहित चोग्वा |'पाडिवए' पाठ छे; टीकामां लखेलु के के जे जे देशमां पड़वा सुधी महोत्सव प्रवर्ते त्यांसुधी अस्वाध्याय, आसुमासमा लौकिक [विजयादशमी | नावगेरे] पर्वामा हिंसानी घणी प्रवृत्ति थाय छे भने क्षुद्रदेवना आगमननो पण संभव छ: माटे आश्विन मासज योग्य जणाय छे.
२ भगवतीसूत्रमा नियंठाना पांच भेद छ, कुशीलना बे भेद गणवाथी छ थाय छे; ते उत्तरोत्तर [ एकेकथी ] विशुद्ध विशुद्धतर छे. ३ कणशला सहित चोखा [ चावल ]नो पुळो.
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