________________
सिद्धांत
रहस्य
॥१६६॥
जीवो छे ए ऋण प्रकारना अंगुल कह्या. हवे त्रण प्रकारना पल्योपमनुं स्वरूप कहे छे:- १ उद्धार पल्योपम, २ अद्वापल्योपम अने ३ क्षेत्र पल्योपम. एकेक पल्यो०ना बादर अने सूक्ष्म बे भेद छे. प्रथम बादर उद्धार पल्योपम कहे छे:- उत्सेधांगुलने मापे एक योजननो लांबो-पहोळो, डंडो अने ऋण गुणी परिधि जेनी होय तेवो पालो, | देवकुरु ने उत्तर कुरुक्षेत्रना एक दिनथी यावत् सात दिन सुधीना जन्मेला युगलिया, तेना वाळाग्रे करी निवडठांसी ठांसीने भरीएं. जे अग्निथी बळे नहि, प्रचंड वायुथी एक रज मात्र उडे नहि, चक्रवर्तीना सैन्यथी दबाय नहि, गंगा नदीनो प्रवाह चाले तोपण भींजाय के भेदाय नहि. एवी रीते भरेल पालामांधी समये समये वालाग्र काढतां जेटले काले ते पालो खाली थाय तेटला कालने बादर उद्धार पल्योपम कट्टेल छे. ते संख्याता समयोनुं जाणवुं एवा दश कोडाकोडी पल्योपमनुं बादर उद्धार सागरोपम थाय. सूक्ष्म उ० नुं स्वरुप सुगमताथी सम | जवा माटे बादर उ० नी प्ररूपणा करेल छे पण. एनुं कांइ प्रयोजन ( उपयोग थतो ) नथी. हवे सूक्ष्म उद्धार पल्योनुं स्वरुप कहे छेः- पूर्वे कट्टेल एकेक वालाग्रना असंख्यात खंड कल्पवा. ते चक्षुधी न जोइ शकाय एवा सूक्ष्म पुद्गलना असंख्यातमा भाग प्रमाणे होय, निगोदना जीवना शरीरथी असंख्यात गुणा अने बादर पृथ्वी कायिक जीवना शरीर जेवडा खंड होय तेवा वालाग्र बडे पूर्वनी माफक पालो भरीएं, पछी समये समये एकेक | वालाग्र काढतां जेटले काले ते पालो ( जेटला वखतमां ) खाली धाय तेटला कालने सूक्ष्म उद्धार पस्यो० कहीएं;
२ अंगुलनुं विशेष स्वरूप जाणवा माटे अंगुल सित्तरी ग्रंथ जोबुं.
प्रमाणबोध विचार ॥१६६॥