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________________ सिद्धांतरहस्य ।।१५५ ।। नथी ते 'अनादिअनंत' पहेलो भांगो. जेनी आदि नयी पण अंतछे ते 'अनादिसांत' बीजो भांगो. जेनी आदिछे अने अंत पण ते 'सादिसांत' बीजो भांगो. जेनी आदि छे अने अंत नथी ते 'सादिअनंत' चोथो भांगो छे. धर्मास्ति अधर्मास्ति अने आकाशास्ति० ए ३ द्रव्यना चारगुण तथा स्कंध, अनादि अनंत भांगेछे अने देश, | प्रदेश ने अगुरुलघु, ए ३ सादिसांत भांगे छे. सिद्धना जीवमां जे धर्मास्ति कायादिक गणना प्रदशो रहेला छे; ते प्रदेशोनी अपेक्षाए सादि अनंत भांगे छे. पुद्गल द्रव्यना ४ गुणो, अनादिअनंत छे. जीव- पुद्गलनो संबंध, अभव्यने आश्रयी अनादिअनंत भांगे छे अने भव्य जीवने आश्रयी अनादि सांत भांगेछे. पुद्गलनो स्कंध, सादिसांत भांगेछे. कालना ४ गुण, अनादिअनंत भांगेछे. पर्यायोमां अतीतकाल, अनादिसांत भांगेले. वर्तमानकाल, सादि सांत भांगेछे अने अनागतकाल, सादि अनंत भांगेछे. कालद्रव्यनुं स्वरुप औपचारिक जाणवुं. जीव द्रव्यना ४ गुण, अनादि अनंतछे. अभव्य जीवने कर्मनो संबंध अनादि अनंतछे. भव्य जीवने कर्मनो संबंध, अनादिसांतछे कारण ? कर्म अनादि (प्रवाहरूपथी) छे, तथापि क्यारेक पण कर्मनो अंत आवशे अर्थात् नाश थशे माटे सांत (अंतसहित) छे. नरकादिक गतिना जे भव करवा, ते सादिसांत भांगेछे अने जीवने सिद्धपणु ते अनादिअनंतछे षद्रव्यनुं संक्षिप्त विचार समाप्त. २ पनवणा, उत्तराध्ययनादिसूत्रो अने तत्त्वार्थ सूत्रमां कालने उपचारिक कहेलछे. व्यवहारनयथी कालद्रव्यछे, ते समय आवलिकादिरूप कालसमयक्षेत्र (अढीद्वीप) मां छे. निश्चयनयथी काल, पर्याय द्रव्य द्रव्यमी वर्तनानेज कालद्रव्यनो उपचार करेलछे, केटलाक आचार्यों कालने मुख्यद्रव्य मानेछे भने केटलाक कालने उपचारथी माने के, षद्रव्य विचार ।। १५५।।
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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