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सिद्धांत
| पृथक्त्व शत क्रोड अने उ. पृ० शतक्रोड. परिहा. संयतो, ज० १-२-३ अने उ०पृ० हजार सक्ष्म सं० संयतो, ज०१-२-३ अने उ० पृ० शत. यथा० संयतो, ज० पृ० क्रोड अने उ०पृ० क्रोड होय॥ छत्रीशमुं अल्पबहुत्वद्वार कहे छेः-सर्वथी थोडा सूक्ष्म सं० संगतो, तेथी परिहा. संयतो, संख्यातगुणा. तेथी यथा. संयतो, संख्या० तेथी छेदोप० संयतो, संख्या तेथी सामा० संयतो संख्यातगुणा. इति संयत (संजया) समाप्त.
पद्रव्य विचार ॥१४६॥
॥१४६॥
अथ षट्नद्रव्य विचार–परिणामि जीव मुत्ता, सप एसा एग खित्त करियाय; निच्चं कारण कत्ता, सव्वगय इयर अप्पवेसे ॥१॥ आ गाथानो शब्दार्थ कहे छे:-पद्व्यमां परिणामी अने अपरिणामी, जीव ने अजीव | मुर्त्त अने अमुर्त, सप्रदेशी ने अप्रदेशी, एक अने अनेक, क्षेत्र अने क्षेत्री, सक्रिय ने अक्रिय, नित्य ने अनित्य, कारण ने अकारण, कर्ता अने अकर्ता, सर्वगत ने असर्वगत, कया कया द्रव्यो छे ? हवे विस्तार रुचि शिष्य, गुरुदेवनें पंचाग नमन करी पूछे छे के हे भगवान ! षद्रव्यमां परिणामि द्रव्य वगेरे केटला द्रव्यो छे?. गुरुमहाराज
१ पूर्व प्रतिपन्न छेदोप० संयतो ज० पदे पृथक्त्व शत क्रोड, ते विचारणीय छे. कारण ? आ काले तो बहु अरूप होय. तेमज पांचमा ला आराने विषे पण बहुज अल्प होय, ज० परिमाण तो पहेला तीर्थकरने समये संभवे. पांचमा आराने छडे दश क्षेत्रना मलीने बीश होय. 'सूत्रस्य | विचित्रागतिः' तत्त्वं केवलि गम्यं सामायिक अने यथाश्यात संयतो, ए बने हमेशां होय अने शेष ३ [ छेदो०, परिहा० सूक्ष्म सं० ] क्यारेक होय अने न पण होय.