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संयत
विचार
॥१३६॥
पुरुष नपुंसक वेदमां होय. सूक्ष्म सं० ने यथाख्यात ए बे संयत, अवेदी होय, ते उपशम अने क्षीण वेदी होय।। सिद्धांत- इत्रीजु रागद्वार कहे छ:-पहेला चार संयत, सरागी अने यथाख्यात सं० वीतरागी, ते उपशांत रागी अथवा रहस्य क्षीणरागी होय ॥ चोथु कल्पद्वार कहे छ-१ स्थितकल्प, २ अस्थितकल्प, ३ जिनकल्प, ४ स्थविरकल्प अने ५ ॥१३६॥ | कल्पातीत. स्थितकल्पमां पांचे संयतो होय, अस्थित कल्पमा सामायिक सं० सूक्ष्मसंपराय सं• अने यथाख्यात
सं० होय, जिनकल्प अने स्थविरकल्पमा प्रथमना त्रण संयतो होय कल्पातीतमां सामयिक, सूक्ष्म सं० अने यथाख्यात संयत होय. पांच, निग्रंथ द्वार कहे छः-१ पुलाक, २ बकुश, ३ प्रतिसेवना, ४ कषाय कुशील ५ निग्रंथ अने ६ स्नातक. हवे पुलाक, बकुश ने प्रतिसेवना एत्रणमां सामा० छेदो० ए बे संयत होय. कषायकुशीलमा प्रथमना चार संयतो होय अने निग्रंथ ने स्नातकमा १ यथाख्यात सं० होय।।छटुं प्रतिसेवनाद्वार कहे छ सामा०ने छेदो० ए बे संयत, पतिसेवी पण होय. जो प्रतिसेवी होय तो मूलगुण अने उत्तरगुणना प्रतिसेवक
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बिरबल
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+ कृतनपुंसक पहेला अने छेला तीर्थकरना मुनिओ, दश प्रकारना कल्पमा स्थित होय, तेओने ते कल्पोर्नु अवश्य पालन कर पड छ, | मारे स्थित कल्प कहेल छे. मध्यम २२ तीर्थकरोना अने महावि देह क्षेत्रना मुनिओने ते १० कल्पोर्नु पालन नीयत नथी माटे तेने अस्थित कल्प
कहेल के. चारित्रमा भतिचार ते प्रतिसेवना, ते भाग में संयत, कुशील भावमा वर्तता मूल-उत्तरगुणनी विराधना करे अने बकुश भावमा वर्ततां | मूल उतरगुणनी विराधना करे. तेमा मूल गुणनी विराधना ते अतिचाररूप जाणवी, अनाचाररूप नहिं.
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