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सिद्धांतरहस्य ॥१३३॥
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गुणा छे, तेथी छठी नरकना दक्षिण दिशाना जीवो असंख्याता छे. एवीरीते क्रमशः पहेली नरक सुधी जाणवू. १० भवननपति देवो, पूर्व ने पश्चिम दिशां थोडा छे, कारण त्यां थोडां भवनो छे, तेथी उत्तर दिशामां असं. दिगानुपात स्यातगुणा छे, त्यां घणा भवनो छे अने पोतानुं स्थान छे, तेथी दक्षिण दिशामां असंख्यात गुणा छे, त्यां पण विचार भवनो विशेष छे. ११ व्यंतरदेवो, सर्वथी थोडा पूर्व दिशामां छे, त्यां भूमि घणी कठण होवाथी. तेथी पश्चिम-18 ॥१३॥ दिशामां विशेषाधिक छे, त्यां अधो लौकिक ग्रामोमां पोलाणनो भाग होवाथी व्यन्तरो त्यां जाय छे. तेथी उन्नर | दिशामां विशेषा छे, कारण? त्यां पोतानुं स्थान छे अने त्यां तेना नगरो पण छे. तेथी दक्षिण दिशामां विशेषान्छे त्यां नगरो वधारे छे.१२ ज्योतिष्क देवो सर्वधी थोडा पूर्व-पश्चिम दिशामां छे, कारण? त्यां चंद्र-सूर्यना उद्यान जेवा द्वीपोमां थोडाज ज्योतिष्को होय छे. तेथी दक्षिण दिशामा विशेषा० छ, त्यां तेना विमानो घणा छे अने | कृष्णपाक्षिक ज्यो० देवो घणा छे, तेथी उत्तरदिशामा विशेषा० छे, कारण ? त्यां मानससरोवर छे त्यां क्रीडा करवानी प्रवृत्तिवाला ज्यो० देवो घणा रहे छे. वली ते सरोवरमां मच्छादि जलचरो छे, ते नजीकमा रहेला ज्यो ना विमानोने देखवाथी तेओने जातिस्मरण थाय छे. तेथी तेओ कंडक व्रतने स्वीकारी अनशनने ग्रहण करीने नियाj करवाथी ज्योतिष्कमां उपजे छे; माटे उत्तर दिशामां घणा छे. १३ पहेला देवलोकथी चोथादेव. सुधीना देवो सर्वथी थोडा पूर्व-पश्चिम दिशामां छे, कारण ? आवलिकाबंध विमानो चारे दिशाए समान छे.. पण पुष्पावकीर्ण विमानो त्यां न होवाथी थोडा छे. तेथी उत्तर दिशामां असंख्यातगुणा छे, कारण ? त्यां
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