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सिद्धांत
रहस्य
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माटे सूत्रने अर्थनुं चिंतन ( अनुभव ) करवुं ते अनुपेक्षा. ते चार प्रकारे छे - १ एगञ्चाणुप्पेहा कहेतां एकत्वानुप्रेक्षा. निश्चयनये असंख्यात प्रदेशी, अमूर्त्त, सदा सउपयोगी, चैतन्य लक्षण एवो मारो आत्मा छे, तेम सर्व आत्माओ निश्चयनये तेवाज छे. ज्ञान-दर्शन मारुं स्वरूप छे, ते सिवाय पुद्गलिक भावो ते बाह्य-उपाधिरूप छे; ए माराथी हवे व्यवहारनये आ आत्मा अनादिकालनो जड ( अचैतन्य ) वर्णादिवाळा पुद्गलनो संयोगी थयो थको स्थावर-त्रसना विविधरूप पामीने जीव नाटकियानी परे चोर्यासीलाख जीवायोनिमां विविध वेष धारण करेल छे. त्रपणे रहेतो ज० अंतमु० अने उ० बे हजार सागर झाझरा काल सुधी रहे अने स्थावरपणे रहे तो ज० अंतमु०ने उ० अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी लगे रहे. क्षेत्रथी अंगुलना असंख्यातमा भाग मात्र आकाशप्रदेश राशि प्रमाण असंख्याता पुद्गल परावर्तन काललगे रह्यो वली स्त्रीवेद पुरुषवेद अने नपुंसक वेदपणे जीव, पुद्गलना संयोगधी नाच्यो. तेमां पण स्त्रीवेदे - देवीपणे, भवनपतिथी इशान देवलोक सुधी इंद्रनी इंद्राणीपणे तथा स्वरूपवती अप्सरापणे ज० १० हजार वर्ष अने उ० ५५ पल्यनी स्थिति ए अनंतवार आ जीव उपनो. पुरुषवेदे - देवपणे भवन पतिथी यावत् नव चैवेयक सुधी महर्द्धिक देवपणे अनंतबार उपनो. महाशक्तिवंत इंद्र, लोकपाल प्रमुखपद पामी ज० १० ह० वर्ष अने उ० ३१ सागर पर्यंत मनोवंच्छित सुख भोगव्या. शक्रेंद्रे एक भवमां सात पल्यनी आयुष्यवाळी २२ क्रोडो क्रोड, ८५ लाख क्रोड, ७१ हजार क्रोड, ४२८ क्रोड, एटली देवीओ भोगवी तो पण ते तृप्त न थयो. स्त्रीवेद-पुरुषवेदे - मनुष्यपणे देवकुरु ने उत्तरकुरुमां युगलिया
धर्मध्यान विचार
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