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२१-पृष्ठे प्रदर्शितस्य खड्गबन्धस्याकारः
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णिर जनि
याव!धर
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हसवर्जितेन य .
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सादितशत्रुदेहगलितरुधिरतटिनी नीतविवृद्धकीर्तिजलधिभरितनभसा । साहसवर्जितेन यदुवर! गुरुतरसा सारवतीभयात! धरणिरजनि भवता ॥