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________________ सत्यर्थ पृथगायाः स्वरग्यजनसंहतेः। क्रमेण तेनैवावृत्तियमकं विनिगद्यते ॥ (विश्वनाथ ) उदाहरण: नवपलाशपलाशवनं पुरःस्फुटपरागपरागतपङ्कजम् । मृदुलतांतलतांतमलोकयत् स सुरभि सुरभि सुमनोमरैः ॥ 'राजा दशरथ ने नवीन पत्तों से युक्त पलाशवन वाले पराग से युक्त कमल वाले तथा कोमल लताओं के अग्रभाग वाले फूलों की सुगंध से भरे वसंत को देखा' । इस पद्य में पलाश'-'पलाश', 'परागत-परागत' 'लतांत-लतांत' 'सुरभि-सुरमि' में एक-से स्वरव्यञ्जनसमूह की ठीक उसी क्रम से भिन्नार्थक आवृत्ति पाई जाती है, अतः यह यमक अलंकार है। ( ३ ) श्लेष-श्लेष को मम्मटादि आलंकारिकों ने शब्दालंकार माना है। जहाँ श्लेष में शम्दपरिवृत्तिसहिष्णुत्व पाया जाता है, वहीं ये अर्थश्लेष नामक अर्थालंकार मानते हैं, तथा जहाँ उसमें परिवृत्तिसहिष्णुत्व नहीं पाया जाता, वहाँ शब्दालंकार मानते हैं। इस संबंध में नीन मत है :-१. कुछ विद्वान् श्लेष के सभंग तथा अभंग दोनों भेदों को शब्दालंकार मानते हैं, जिनमें प्रमुख आलंकारिक मम्मट हैं। २. कुछ आलंकारिक (रुय्यकादि ) सभंगश्लेष को शब्दालंकार मानते हैं तथा अभंगश्लेष को अर्थालंकार। ___३. कुछ आलंकारिक (अप्पय दीक्षितादि ) सभंग तथा अभंग दोनों तरह के श्लेष को अर्थालंकार मानते हैं। कुवलयानंद में दीक्षित ने बताया है कि वे दोनों को अर्थालंकार मानते हैं इसकी पुष्टि चित्रमीमांसों में की गई है। किन्तु चित्रमीमांसा में श्लेष अलंकार का कोई प्रकरण नहीं मिलता। इस प्रकार दीक्षित के मत से श्लेष शब्दालंकार न होकर अर्थालंकार ही है। यही कारण है, दीक्षित ने कुवलयानंद में श्लेष अलंकार के जो उदाहरण दिये हैं, वे मम्मट के मत से श्लेष नामक शम्दालंकार होंगे: (.)सर्वदो माधवः पायात् स योऽगंगामदीधरत् । (२) अब्जेन त्वन्मुखं तुल्यं हरिणाहितसक्तिना ॥ श्लेष अलंकार के लक्षणोदाहरण ग्रन्थ में देखे जा सकते हैं। ( ४ ) वक्रोक्ति:-ठीक यही बात वक्रोक्ति के विषय में कही जासकती है। मम्मटादि आलंकारिक वक्रोक्ति को शब्दालंकार मानते हैं तथा इसके श्लेष एवं काकु ये दो भेद मानते हैं । दीक्षित ने वक्रोक्ति को अर्थालंकार माना है। वक्रोक्ति को अर्थालंकार मानने वाले सर्वप्रथम आलंकारिक रुय्यक हैं, जिन्होंने इसे गूढार्थ प्रतीतिमूलक अर्थालंकारों में माना है। अलंकार सर्वस्व में वक्रोक्ति का विवेचन शब्दालंकारों के साथ न कर अर्थालंकार प्रकरण में व्याजोक्ति के वाद तथा स्वमावोक्ति से पहले किया गया है । मम्मट के मत का अनुकरण बाद के आलंकारिकों में केवल साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने किया है, जो इसे स्पष्टतः शब्दालंकार मानते हैं । शोभाकर मित्र, विद्यानाथ, विद्याधर तथा अप्पय दीक्षित ने रुय्यक के ही मत का अनुसरण कर वक्रोक्ति को अर्थालंकार ही मामा है। दीक्षित ने वक्रोक्ति के तीन भेद माने है :-शब्दश्लेषमूला,
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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