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________________ मालादी पकालङ्कारः हृदयेन त्वयि स्थितिः कृतेत्येवं वाक्यद्वयान्वयि । अतो दीपकम्, गृहीतमुक्तरीतिसद्भावादेकावली चेति दीपकैकावलीयोगः । यथा वा संग्रामाङ्गणमागतेन भवता चापे समारोपिते, देवाकर्णय येन येन सहसा यद्यत्समासादितम् । कोदण्डेन शराः, शरैररिशिरस्तेनापि भूमण्डलं, तेन त्वं भवता च कीर्तिरतुला, कीर्त्या च लोकत्रयम् ॥ १७७ अत्र 'येन येन सहसा यद्यत्समासादितम्' इति संक्षेपवाक्यस्थितमेकं 'समासादितम्' इति पदं 'कोदण्डेन शराः' इत्यादिषु षट्स्वपि विवरणवाक्येषु तत्तदुचितलिङ्गवचन विपरिणामेनान्वेतीति दीपकम् । शरादीनामुत्तरोत्तर विशेषणाभावादेकावली चेति दीपकैकावलीयोगः ।। १०७ ।। चमत्कार अलंकार संकर की तरह दो या अधिक अलंकारों के मिश्रण के कारण नहीं है । यहाँ कारक क्रिया वाले दीपक तथा एकावली का योग होने से विशेष चमत्कार पाया जाता है, अतः उसे अलग अलंकार मानना ठीक है । 'अत्र केचित् - ' मालादीपकं नालंकारान्तरं, किंतु अलंकारद्वयसंकरवद्दीपको स्थापितत्वा देकावल्यास्तयोः संकर एव । अन्यथा अलंकारान्तरस्यापि संकर बहिर्भावापत्ते' रित्याहुः । वस्तुतस्तु, नात्र दीपकसंभवः । उदाहरणे कोदण्डादीनां सर्वेषामपि प्रस्तुतत्वेन प्रस्तुताप्रस्तुतकधर्मान्वय दीपकस्यात्र प्रसरायोगात् । न चास्तु प्रकृतैकरूपधर्मान्वयात्तुल्ययोगितेति वाच्यम् । तथात्वे तत्संकरापत्तेरिति । वस्तुतस्तु, नात्रालंकारसंकरवत् संकरमात्रकृतो विच्छित्तिविशेषः । नियतदीपकैकावली योगकृत विच्छित्तिविशेषस्यालंकारांतरनिर्बाह्यत्वात् । इति ।' (रसिकरंजनी पृ० १७७-७८ ) ने यहाँ 'स्थितिः' यह एक पद, कामदेव ने उसके हृदय में स्थिति की और उस हृदय तुम में स्थिति की, इस प्रकार दो वाक्यों के साथ अन्वित होता है । इसलिए यहाँ दीपक अलंकार है । साथ यहाँ गृहीत मुक्तरीति वाली एकावली भी है, अतः दीपक तथा एकावली का योग है । अथवा जैसे 'कोई कवि किसी राजा की प्रशंसा कर रहा है – हे देव, जब आपने संग्रामभूमि में आकर धनुष चढ़ाया, तो जिस जिस वस्तु ने जिस जिस वस्तु को प्राप्त किया, वह सुनो । ( तुम्हारे ) धनुष ने बाणों को प्राप्त किया, बार्णो ने शत्रुओं के सिरों को, शत्रुओं के सिरों ने पृथ्वी को, पृथ्वी ने आपको, आपने कीर्ति को, तथा कीर्ति ने तीनों लोकों को ।' यहाँ 'जिस जिस वस्तु ने जिस जिस वस्तु को प्राप्त किया' इस संक्षेपवाक्य में प्रयुक्त 'समासादितं' इस पद का अन्वय 'कोदण्डेन शराः' आदि छहों विवरण वाक्यों के साथ उस उस वाक्य के कर्म के अनुकूल लिंग तथा वचन के परिणाम से अन्वय हो जाता है; अतः यहाँ दीपक अलंकार है । इसके साथ शरादि उत्तरोत्तर पदार्थ के विशेषण हैं, अतः यहाँ एकावली है । इस प्रकार इस पद्य में दीपक तथा एकावली का योग होने से माला दीपक अलंकार है । टिप्पणी- इस संबंध में पण्डितराज जगन्नाथ का मत जान लेना आवश्यक होगा । वे ‘मालादीपक' को अलग से अलंकार नहीं मानते । वे वस्तुतः एकावली के उस भेद में जिसमें १२ कुव०
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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