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________________ विभावनालडारः १४५ कार्योत्पत्तिस्तृतीया स्यात् सत्यपि प्रतिबन्धके। नरेन्द्रानेव ते राजन् ! दशत्यसिभुजङ्गमः ॥ ७९ ॥ अत्र नरेन्द्रा विषवैद्याः सर्पदंश (विष ?) प्रतिबन्धकमन्त्रौषधिशालिनः श्लेषेण गृहीता इति प्रतिबन्धके कार्योत्पत्तिः। यथा वा चित्रं तपति राजेन्द्र ! प्रतापतपनस्तव । अनातपत्रमुत्सृज्य सातपत्रं द्विषद्गणम् ।। ७६ ॥ अकारणात् कार्यजन्म चतुर्थी स्याद्विभावना । शङ्खाद्वीणानिनादोऽयमुदेति. महदद्भुतम् ॥ ८० ॥ अत्र 'शङ्ख' शब्देन कमनीयः कामिनीकण्ठस्तन्त्रीनिनादत्वेन तद्गीतं चाध्यवसीयत इत्यकारणात् कार्यजन्म । (तीसरी विभावना) ७९-जहां कारण से कार्योत्पत्ति होने में किसी प्रतिबन्धक (रुकावट) की उपस्थिति होने पर भी किसी तरह कार्योत्पत्ति का वर्णन किया जाय, वहां तीसरी विभावना होती है, जैसे, हे राजन् तेरा खड्गरूपी सर्प विषवैद्यों (नरेन्द्र, राजाओं) को ही डसता है। ___ यहां 'नरेन्द्र' शब्द से श्लेष के द्वारा उन विषवैद्यों का ग्रहण किया गया है, जो सर्पदंश को रोकने वाली मणिमंत्रौषधि से युक्त होते हैं। यहां 'सर्प' नरेन्द्रों को ही डसता है, यह प्रतिबंधक के होते हुए कारण से कार्योत्पत्ति का उदाहरण है। यहां विभावना इसी अर्थ में है। नरेन्द्र का दूसरे अर्थ 'राजा' लेने पर विभावना नहीं है, अतः यह श्लेषानुप्राणित विभावना का उदाहरण है। अथवा जैसे हे राजेन्द्र ! तुम्हारा प्रतापरूपी सूर्य छत्ररहित को छोड़ कर छत्रयुक्त शत्रुगण को संतप्त करता है। यह आश्चर्य की बात है। पूर्वोक्त उदाहरण श्लेष से संकीर्ण है। यहां प्रतापरूपी सूर्य इस रूपक पर विभावना आश्रित है। (चौथी विभावना) ८०-जहाँ प्रसिद्ध कारण से भिन्न वस्तु (अकारण) से भी कार्य की उत्पत्ति हो, वहाँ चौथी विभावना होती है। जैसे, बड़े आश्चर्य की बात है कि शंख से वीणा की झंकार उत्पन्न हो रही है। __ यहाँ 'नायिका के कण्ठ से वीणा की झंकार के समान गीत उत्पन्न हो रहा है' इस भाव के लिए उक्त वाक्य का प्रयोग किया गया है। वीणानिनाद का कारण वीणा ही है, 'शंख' तो उसका अकारण है, अतः यहाँ अकारण से कार्य की उत्पत्ति वर्णित है। साथ ही इस उदाहरण में शंख शब्द के द्वारा तद्वत् सुन्दर रमणीकंठ तया तन्त्रीनिनाद के द्वारा तद्वन्मधुर गीत अध्यवसित हो गये हैं, अतः इस अंश में अतिशयोक्किहै। (यह उदाहरण अतिशयोक्तिमूला विभावना का है।) १० कुव०
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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