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________________ अप्रस्तुतप्रशंसालङ्कारः १०७ यथा वाआबद्धकृत्रिमसटाजटिलांसभित्ति रारोपितो मृगपतेः पदवीं यदि श्वा | मत्तेभकुम्भतटपाटनलम्पटस्य नादं करिष्यति कथं हरिणाधिपस्य ॥ अत्र शुनकस्य निन्दा निन्दनीयत्वेन प्रस्तुते तत्सरूपे कृत्रिमवेषव्यवहा. रादिमात्रेण विद्वत्ताऽभिनयवति वैधेये पर्यवस्यति । यथा वा अन्तश्छिद्राणि भूयांसि कण्टका बहवो बहिः । कथं कमलनालस्य मा भूवन् भङ्गुरा गुणाः ।। अत्र कमलनालवृत्तान्तकीर्तनं तत्सरूपे बहिः खलेषु जाग्रत्सु भ्रातृपुत्रादिभिरन्तःकलहं कुर्वाणे पुरुषे पर्यवस्यति । एवं च लक्ष्यलक्षणयोः प्रशंसाशब्दः स्तुतिनिन्दास्वरूपाख्यानसाधारणकीर्तनमात्रपरो द्रष्टव्यः । सामान्यनिबन्धना यथा ( माघ. २।४२) विधाय वैरं सामर्षे नरोऽरौ य उदासते। प्रक्षिप्योदर्चिषं कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम् ।। - अथवा जैसे____'यदि किसी कुत्ते के कंधे पर नकली अयाल बाँध कर उसे सिंह के पद पर बिठा दिया जाय, तो वह मस्त हाथी के गण्डस्थल को विदीर्ण करने में चतुर मृगाधिप (सिंह) का नाद कैसे कर सकेगा?' (यहाँ वाच्य अर्थ के रूप में अप्रस्तुत श्ववृत्तान्त प्रतीत हो रहा है, इससे सारूप्य के कारण प्रस्तुतरूप में ऐसे व्यक्ति के वृत्तान्त की व्यंजना हो रही है, जो स्वयं मूर्ख हैं, किंतु नकली साधनों के द्वारा विद्वान् के योग्य पद पर आसीन हो गया है।) ___ यहाँ कुत्ते की निन्दा की गई है। अप्रस्तुत के निंद्य होने के कारण समानरूप वाले (तुल्य) प्रस्तुत-कृत्रिमवेषव्यवहारादि मात्र से विद्वत्ता का अभिनय करने वाले मूर्ख-- सम्बन्धी वृत्तान्त की व्यंजना पाई जाती है। अथवा जैसे इस कमलनाल के अन्दर अनेकों छिद्र हैं, बाहर बहुत से काँटे हैं, तो उसके रेशे (गुण) भंगुर (टूटने वाले) कैसे न हो ?? (यहाँ कमलनालवृत्तान्त अप्रस्तुत है, इसके द्वारा तुल्यरूप ऐसे पुरुष के वृत्तान्त की व्यञ्जना हो रही है, जिसके घर के अन्दर दोष हों और बाहर दुष्ट उसके पीछे पड़े हों।) ___यहाँ कमलनालवृत्तान्त वाच्य है। इस अप्रस्तुत वृत्तान्त के द्वारा उसके समान किसी ऐसे पुरुष के वृत्तान्त की प्रतीति हो रही है, जो बाहर दुष्टों के होते हुए अपने भाई-पुत्र आदि से घर में कलह करता हो । लक्ष्य (उदाहरण) तथा लक्षण (परिभाषा) में प्रशंसा शब्द से स्तुति, निंदा या स्वरूपाख्यानरूप कीर्तनमात्र समझा जान ___सामान्यनिबन्धना अप्रस्तुतप्रशंसा वहाँ होगी, जहाँ सामान्य अप्रस्तुत के द्वारा विशेष प्रस्तुत की व्यंजना हो।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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