________________
श्री भावविभक्ति-अध्ययन-अ
वण्णओ पीअर जे उ, भइए से उ गंधओ रसओ फासो चेव, भइए संठाणओवि अ ॥२५॥ वण्णओ सुक्किले जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चैव, भइए संठाणओवि अ ॥ २६ ॥ गंधओ जे भवे सुब्भी, भइए से उवण्णओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥२७॥
૩૯૧
गंधभो जे भवे दुब्मी, भइए से उवण्णओ । रसओ फासओ चैव, भइए संठाणओवि अ ||२८|| रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेत्र, भइए संठाणओवि अ ॥ २९ ॥ रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३० ॥ रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३१ ॥ रसओ अंबिले जे उ, भइए से उ वण्णओ । jar फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३२ ॥ रसओ महुरे जे उ, भइए से उ वण्णओ गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥३३॥ फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ । ३४||
I