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________________ २० वृत्तरत्नाकरे बाणरसैः स्याद्भतनगगैः श्रीः ॥ ३६ ॥ म्भौ लौ गः स्याद् भ्रमरविलसितम् ॥ ३७ ॥ रान्नराविह रथोद्धता लगौ ॥ ३८ ॥ स्वागतेति रनभाद् गुरुयुग्मम् ॥ ३९ ॥ ननसगगुरुरचिता वृन्ता ॥ ४० ॥ ननरल गुरुभिश्च भद्रिका ॥ ४१ ॥ • श्येनिका रजौ रलौ गुरुर्यदा ॥ ४२ ॥ मौक्तिकमाला यदि भतनाद् गौ ॥ ४३ ॥ उपस्थितमिदं ज्सौ ताद् कारौ 11 88 11 चन्द्रव निगदन्ति रनभसैः ॥ ४५ ॥ जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ ॥ ४६ ॥ स्यादिन्द्रवंशा ततजै रसंयुतैः ॥ ४७ ॥ इह तोटकमम्बुधिसैः प्रथितम् ॥ ४८ ॥ द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ ॥ ४९ ॥ मुनिशरविरतिन म्यौ पुटोऽयम् ॥ ५० ॥ प्रमुदितवदना भवेन्नौ च रौ ॥ ५१ ॥ नसहितौ न्यौ कुसुमविचित्रा ॥ ५२ ॥ रसैर्जसजसा जलोद्धतगतिः ॥ ५३ ॥ चतुर्जगणं वद मौक्तिकदाम ॥ ५४ ॥ भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भिः ॥ ५५ ॥ रैश्चतुर्भिर्युता त्रग्विणी सम्मता ॥ ५६ ॥ भुवि भवेन्नभजरैः प्रियम्वदा ॥ ५७ ॥ त्यौ त्यौ मणिमाला च्छिन्ना गुहवक्त्रैः ॥ ५८ ॥ धीरैरभाणि ललिता तभौ जरौ ॥ ५९ ॥ प्रमिताक्षरा सजससैरुदिता ॥ ६० ॥ ननभरसहिता महितोज्ज्वला ॥ ६१ ॥ पञ्चाश्वैरिछना वैश्वदेवी ममौ यौ ॥ ६२ ॥ अब्ध्यष्टाभिर्जलधरमाला म्भौ स्मौ ॥ ६३ ॥ इह नवमालिका नजभयैः 1: EATA || 18 || स्वरशरविरतिर्ननौ रौ प्रभा ॥ ६५ ॥ भवति नजावथ मालती जरौ ॥ ६६ ॥ जभौ जरौ वदति पञ्चचामरम् ॥ ६७ ॥ अभिनवतामरसं, नअजाद्यः ॥ ६८ ॥
SR No.023482
Book TitleVruttaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKedar Bhatt, Narayan Bhatta, Vidyanatha Shastri
PublisherJai Krishna Das Hari Das Gupta
Publication Year1927
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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