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विलिखति .... ... ... ५२ सवः पायादि ... विसृष्टरागा ...
| स वक्तुमखि विस्तारशालिनि
सहसा विदधीत वृषपुंगवल ...
सह्याः पन्नग शरदीव ...
साधूनामुपकर्तु शशी दिवस ... ... १ सा बाला वय शुद्धान्तदुर्लभ
साहित्यपाथो शैलेन्द्रप्रतिपाद्य
सीमानं न जगाम .... स एकत्रीणि ... , ... ७४
सुहश्र विलम्बसु संकेतकाल ... ... ... ७
सौजन्याम्बु ... संग्रामाङ्गन
स्पृष्टास्ता नन्दने संचारपूतानि ... ... ४४
स्वपक्षलीला सच्छायाम्भोज
| स्वेच्छोपजात सजातपत्र ...
| हा राही शित सत्पुष्करद्योति
हृदयमधिष्ठित सधः करस्पर्श
| हे हेलाजित ... सद्यः कौशिक