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________________ MMMMMMन पत्रहारत्वMARAMMA राजस्थानी और जैन साहित्य के विशिष्ट विद्वान डॉ. नरेन्द्र भानावत ने दायित्व सम्हाला। आपके सम्पादन के इस पत्रिका ने महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों हांसिल की। भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव पर देशभर से प्रकाशित विशेषांकों में जिनवाणी के जैन संस्कृति और राजस्थान विशेषांक को सर्वश्रेष्ठ मानकर दिगम्बर समाज की ओर से लक्ष्मी देवी जैन पुरस्कार के रुप में डॉ. भानावत को प्रशस्ति पत्र एवं स्वर्णपदक प्रदान कर सम्पानित किया गया। यह समारोह बडौदा में आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के सानिध्य में तत्काली विदेश मंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेकी के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। प्रो. नरेन्द्र भानावत द्वारा जैनदर्शन, साहित्य और संस्कृति की विशिष्ट पत्रिका बनने की ओर अग्रसर जिनवाणी के अन्तरंग और बहिरंग दोनों दृष्टियों से निखार लाने का प्रयत्न किया गया। फरवरी 1968 से उगते सितारे नामक स्तम्भ सम्पादक द्वारा प्रारम्भ किया गया। जिस में नये लेखकों को स्थान दिया जाने लगा। प्रश्नोत्तरी स्तम्भ को प्रारम्भ करने के पीछे डॉ. नरेन्द्र भानावत की बहुत सूक्ष्म दृष्टि रही है। वे अपने सम्पादकीय में लिखते हैं - 'जैनदर्शन एक वैज्ञानिक दर्शन है। उसके अध्ययन अध्यापन की पर्याप्त सुविधाएँ समाज में प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध नहीं है। कई ऐसे स्थान भी हैं, जहाँ संत-सतियों के दर्शन भी दुर्लभ होते हैं। इस स्थिति में जिज्ञासु स्वाध्यायियों के मन में जो सैद्धन्तिक प्रश्न उठते हैं, उनके समाधान का कोई मार्ग नहीं रह जाता। अतः ऐसे तात्त्विक प्रश्नों के उत्तर जिनवाणी के माध्यम से दिए जाएं। इसी उद्ददेश्य को लेकर प्रश्नोत्तर स्तम्भ प्रारम्भ किया जा रहा है। अपैल 1974 से श्री महावीर कोटिया द्वारा प्रणित आत्मजयी नामक उपन्यास चार किश्तों में प्रकाशित हुआ। यह भगवान महावीर के जीवन और उपदेश पर आधारित मानवतावादी एक लघु उपन्यास है। दीक्षा कुमारी का प्रवास नामक उपन्यास भी जिनवाणी के अंकों में प्रकाशित हुआ। ૧૭
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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