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________________ ६८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण : मोहोपमाः-भ्रमात्मक ज्ञान पर अवलम्बित उपमा को मोहोपमा कहा गया है। किसी वस्तु में उससे भिन्न वस्तु का ज्ञान मोह कहा जाता है। अतः मोह भ्रान्त ज्ञान है । अत्यन्त सादृश्य के कारण उपमेय में उससे भिन्न उपमान का भ्रम इसके उदाहरण में दिखाया गया है। भ्रमात्मक ज्ञान की धारणा नवीन नहीं है । उपनिषदों एवं दर्शन-ग्रन्थों में ज्ञान-मीमांसा के क्रम में मनीषियों ने तत्त्व-ज्ञान के साथ संशयात्मक एवं भ्रमात्मक ज्ञान पर भी विचार किया है। काव्यात्मक सौन्दर्य की सृष्टि करने वाले संशय को दण्डी के पूर्व भामह ने ही स्वतन्त्र काव्यालङ्कार होने का गौरव प्रदान कर दिया था; किन्तु भ्रम को वह गौरव दण्डी के 'काव्यादर्श' तक भी प्राप्त नहीं हो सका। उन्होंने प्रस्तुत उपमा-भेद में काव्यालङ्कार में भ्रमात्मक ज्ञान की सत्ता अवश्य स्वीकार की है। भरत के मिथ्याध्यवसाय लक्षण के प्राप्त एक पाठ में सन्देह से विचार के अन्यथाभाव-कल्पन पर बल दिया गया है।' अभिनव ने उसकी टीका में सन्देह से भ्रम का अभिप्राय स्वीकार किया है ।२ स्पष्ट है कि भ्रम-मूलक ज्ञान पर अवलम्बित अलङ्कार-धारणा का मूल 'नाट्यशास्त्र' की उक्त लक्षणधारणा में ही था। उससे उपमा-धारणा को मिला कर उपमा-भेद मोहोपमा की कल्पना कर ली गई। परवर्ती आचार्यों ने इसे भ्रान्तिमान व्यपदेश से पृथक अलङ्कार स्वीकार किया है। निर्णयोपमाः-इस उपमा-भेद में सादृश्य के कारण प्रस्तुत वस्तु में अप्रस्तुत वस्तु के द्वै कोटिक संशयात्मक ज्ञान के होने पर निष्कर्ष-रूप में सत्य का निर्णयात्मक आख्यान होता है। इसका मूल संशयात्मक ज्ञान है जिसमें अन्ततः तथ्य का निश्चय हो जाता है। परवर्ती आचार्यों ने इसे सन्देह का ही निश्चयान्त भेद मान लिया है। इसकी स्वरूप-संघटना भामह की ससन्देह अलङ्कार-धारणा तथा भरत की आख्यान-लक्षण-धारणा के मिश्रण से हुई है।निर्णय का तत्त्व आख्यान-लक्षण से तथा सन्देह का तत्त्व ससन्देह से गृहीत है। १. द्रष्टव्य-भरत, ना० शा० १६, १६ २. 'सन्देहोऽत्र भ्रमः, अथवा अन्यथाभावो विपर्ययः ।' -अभिनव, ना० शा० अ० भा० पृ० ३०० ३. आख्यान लक्षण में तत्व-निर्णय पर बल दिया गया है, - द्रष्टव्य-भरत, ना० शा० १६, २१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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