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________________ ५२६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण उपमादोषों को मम्मट अनुचितार्थत्व दोष में अन्तभुक्त मानते हैं। उपमाविरुद्धत्व भी उपमा का दोष माना गया है। मम्मट इसे अनुचितार्थत्व दोष के अन्तर्गत मानते हैं। उत्प्रेक्षा में असमर्थ वाचक शब्द के प्रयोग से दोष आता है । मन्ये, शङ्क, ध्र वं, प्रायः, नूनम्, अवैमि आदि उत्प्रेक्षा के वाचक हैं। 'यथा' आदि सादृश्यवाचक पद का उत्प्रेक्षा में प्रयोग दोष है, क्योंकि यथा आदि सम्भावना के बोध में असमर्थ है। मम्मट ऐसे स्थल में अवाचकस्व दोष मानते हैं। समासोक्ति में उपमान का उपादान होने पर अनुपादेयत्व दोष होता है । उपमेय के कथन से ही उपमान की प्रतीति समासोक्ति में होनी चाहिए । उपमान का पुनः उल्लेख दोष माना जाता है। इसे मम्मट अपुष्टार्थत्व या पनरुक्त में अन्तभुक्त मानते हैं। नपुसक में नायक आदि के व्यवहार का आरोप समासोक्ति का दोष होगा, जिसे मम्मट अनुचितार्थत्व दोष मानेंगे । इसी प्रकार अप्रस्तुत प्रशंसा में उपमान से उपमेय गम्य होना चाहिए। उपमेय का उपादान दोष है । भिन्न आधार में विरोध का वर्णन विरोधालङ्कार का दोष है। एक आधार में ही विरोध के निरूपण में चमत्कार होने से अलङ्कार का सौन्दर्य रहता है। विरोध का भिन्नाश्रयत्व मम्मट के अनुसार अनुचितार्थत्व दोष है। इसी प्रकार अलङ्कारों के अन्य सम्भावित दोषों को पद, पदार्थ आदि के दोषों में अन्तर्भूत मान कर मम्मट ने उनका स्वतन्त्र विवेचन आवश्यक नहीं माना है।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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