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परिशिष्ट ३
अलङ्कार - दोष
शब्द तथा अर्थ के अलङ्कारों की योजना में असङ्गति से अलङ्कार-दोष उत्पन्न होते हैं । अनुप्रास शब्दालङ्कार में वर्ण-योजना की असङ्गति के आधार पर तीन दोषों की कल्पना की गयी है - प्रसिद्धि का अभाव, वैफल्य तथा वृत्ति विरोध । अनुप्रास योजना के अनुरोध से अप्रसिद्ध पदों की योजना करने से प्रसिद्ध्यभाव दोष; चमत्कार की सृष्टि में असमर्थ वर्णों की योजना से वैफल्य तथा उपनागरिका आदि वृत्तियों के प्रतिकूल वर्ण- योजना से वृत्ति-विरोध दोष होता है । मम्मट ने इन तीन अनुप्रास-दोषों को पद आदि के दोषों में ही अन्तर्भूत माना है । उनके अनुसार प्रसिद्ध्यभाव प्रसिद्धि - विरुद्ध से; वैफल्य अपुष्टार्थत्व से तथा वृत्ति विरोध प्रतिकूलवर्णत्व से पृथक् नहीं ।
यमक का त्रिपाद - निबन्धन दोष माना जाता है । मम्मट इसे अप्रयुक्तत्व दोष में अन्तर्भूत मानते हैं ।
अर्थालङ्कारों में उपमा के दोषों का विस्तृत विवेचन हुआ है । उपमेय के लिए जिस उपमान की योजना की जाती है उसका धर्म उपमेय के धर्म के समान होना चाहिए । जहाँ उसमें उपमेय से जातिगत या प्रमाणगत न्यूनता रहती है, वहाँ होनोपम तथा जहाँ आधिक्य रहता है वहाँ अधिकोपम दोष माना जाता है । मम्मट ने इनका क्रमशः हीनपदत्व तथा अधिकपदत्व में अन्तर्भाव माना है । उपमेय और उपमान के बीच भिन्न लिङ्ग और भिन्न वचन का प्रयोग उपमा के दोष के रूप में स्वीकृत है । मम्मट इन्हें भग्नप्रक्रम दोष में अन्तर्भूत मानते हैं । उन्होंने उपमा में काल, पुरुष, विधि आदि के दोष का भी भग्नप्रक्रम में ही अन्तर्भाव माना है । असादृश्य तथा असम्भव