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८०६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण है तो कहीं उसके वर्णन में लाघव होता है । समासोक्ति, सहोक्ति आदि में संक्षेप में अर्थ का वर्णन किया जाता है। विरोधमूलक अलङ्कारों में आपाततः दीख पड़ने वाले विरोध का परिहार हो जाने पर तात्त्विक अविरोध देखकर भावक का मन चमत्कृत होता है। विरोध वस्तु के प्रभाव को बढ़ाने में भी सहायक होता है। विलक्षण उक्ति-भङ्गियों पर आधृत उक्तिमूलक अलङ्कारों में उक्ति का वैचित्र्य चमत्कार उत्पन्न करता है। प्रेय, भाविक, उदात्त आदि में वस्तु-वर्णन के विशिष्ट प्रकार से प्रभावोत्पादकता आती है। स्वभावोक्ति में वस्तु-स्वभाव के वर्णन का जो अनूठा ढंग रहता है वह वस्तु के स्वभाव को अधिक सुन्दर बनाकर प्रस्तुत करता है। इसीलिए स्वभावोक्ति को भी अलङ्कार माना जाता है। ___ * काव्य में अलङ्कार के स्थान के सम्बन्ध में दो प्रकार की मान्यताए रही हैं। कुछ आचार्यों ने अलङ्कार-हीन काव्य की कल्पना को उष्णता रहित अग्नि की कल्पना की तरह निराधार माना तो दूसरे आचार्यों ने अलङ्कार को काव्योक्ति का ऐसा अनित्य और बाह्य धर्म माना, जो कहीं-कहीं तो काव्य की आत्मा का उपकार करता है; पर कहीं-कहीं या तो तटस्थ रहता है या भावबोध में बाधक ही हो जाता है। अलङ्कार को यदि व्यापक अर्थ में काव्यसौन्दर्य का पर्याय माना जाय, तब तो उसे अग्नि की उष्णता की तरह काव्य का नित्य धर्म मानना ही होगा; पर विशिष्ट अर्थ में यमक आदि शब्दालङ्कार तथा उपमा आदि अर्थालङ्कार को दृष्टि में रखते हुए पहली मान्यता दुराग्रहपूर्ण ही लगती है। अलङ्कार शब्द यमक, उपमा आदि के विशिष्ट अर्थ में ही रूढ है। इस अर्थ में भी अलङ्कारों को काव्य का बाह्य आभूषण मानना उसके महत्त्व का अवमूल्यन करना होगा। वस्तुतः रस-सिद्ध कवि की उक्तियों में अलङ्कार सहजात होते हैं, ऊपर से लादे हुए नहीं। भाव की अभिव्यक्ति में सहज भाव से आये हुए अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य अलङ्कार काव्य के अन्तरङ्ग धर्म होते हैं । जहाँ कवि केवल अलङ्कार-प्रयोग का कौशल प्रदर्शित करने के लिए अलङ्कार-योजना में अतिरिक्त श्रम करते हैं, वहाँ अलङ्कार उक्ति पर बाहर से लादे हुए आभूषण की तरह होते हैं ।
* इस प्रश्न को लेकर बहुत ऊहापोह हुआ है कि यदि यमक, उपमा आदि अलङ्कार हैं तो अलङ्कार्य क्या है, जिसे ये अलङ्कत करते हैं ? इसका सर्वसम्मत उत्तर है कि काव्य के शब्द और अर्थ अलङ्कार्य हैं। यमक, अनुप्रास आदि शब्द को अलङ कृत करते हैं और उपमा. रूपक आदि अर्थ को। किन्तु.