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________________ ७६० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अलङ्कारों में रहता है; पर उसके साथ कुछ अलङ्कारों में चमत्कार रहता है और कुछ में वक्रता तथा कुछ में अतिशय-कथन । सामान्य रूप से सभी अलङ्कारों में रहने वाले अतिशय का अर्थ है-लोकव्यवहार की उक्ति से काव्योक्ति को अलग करने वाली रमणीयता। अतिशय वर्ग के अलङ्कारों का मूल-तत्त्व बढा-चढ़ाकर कथन है। पर इस युक्ति से भी सभी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। अतिशय, वक्रता तथा उससे उत्पन्न चमत्कार को परम्परा से तत्त्वतः अभिन्न माना जाता रहा है। इन्हें अलगअलग मानने में पाठक का संस्कार बाधक हो सकता है। और अधिक विस्तृत आधार का अन्वेषण करते हुए डॉ० नगेन्द्र ने अलङ्कारों के छह आधार स्वीकार किये हैं और उनका सम्बन्ध चित्त की छह अवस्थाओं से माना है। वे आधार हैं-साधर्म्य. अतिशय, वैषम्य, औचित्य, वक्रता और चमत्कार । इनका सम्बन्ध स्पष्टता, विस्तार, आश्चर्य, अन्विति, जिज्ञासा और कौतूहल की मनोदशा से माना गया है। इन छह आधारों में से अतिशय, वक्रता और चमत्कार को मूलाधार मानने के औचित्य पर हम विचार कर चुके है । तीन नवीन आधार हैं—साधर्म्य, वैषम्य और औचित्य । साधर्म्यमूलक अलङ्कारों का एक वर्ग भारतीय अलङ्कारशास्त्र में प्राचीन काल से ही मान्य रहा है । वैषम्य, सम्भवतः, विरोध के स्थान पर नवीन शब्द का प्रयोग है। विरोध को भी अनेक अलङ्कारों का समान आधार आलङ्कारिकों ने माना है । औचित्य को कुछ अलङ्कारों का मूलाधार मानने में औचित्य शब्द का प्रयोग कुछ विशिष्ट एवं सङ कुचित अर्थ में किया गया है । औचित्य के सम्बन्ध में भारतीय अलङ्कारशास्त्र के पाठकों की बड़ी व्यापक धारणा रही है। औचित्य काव्य के सभी तत्त्वों का प्राणभूत तत्त्व माना गया है। अनौचित्य काव्य के अनेक दोषों को जन्म देता है। औचित्य के अभाव में गुण, अलङ्कार आदि के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। औचित्य को मूलाधार मानने में सम्भवतः डॉ० नगेन्द्र की दृष्टि में वे अलङ्कार थे, जो अनुरूप घटना तथा अनुक्रम आदि पर आधृत होते हैं । अनुक्रम या अनुरूपता आदि के लिए औचित्य-जैसे शब्द का, जिसे काव्यशास्त्र में विशेष सङ केत प्राप्त है, प्रयोग उचित नहीं जान पड़ता। उक्त छह आधारों पर वर्गीकृत अलङ्कारों का पूर्वोक्त छह मनोभावों से सम्बन्ध दिखाते हुए कहा गया है कि ऐसा करने के लिए ( उक्ति को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए ) हम सदृश लोकमान्य वस्तुओं से तुलना के द्वारा अपने कथन को स्पष्ट बना कर उसे
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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