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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ ५७ ४. लक्षणों के पारस्परिक योग से निष्पन्नः-आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, समाहित तथा व्याजस्तुति अलङ्कारों की रूप-रचना में एकाधिक लक्षणों का योग है। उदाहरणार्थ-प्रतिषेध तथा मनोरथ लक्षणों के योग से आक्षेप, शोभा एवं उदाहरण के मिलन से अर्थान्तरन्यास, अतिशय और निर्भासन के पाठ-भेद माला लक्षणों के मेल से व्यतिरेक तथा कपट के पाठभेद गर्हण एवं प्रिय के संयोग से व्याजस्तुति अलङ्कार आविर्भूत हुए हैं। ५. अलङ्कार तथा लक्षण के संयोग से उत्पन्नः-समासोक्ति, अतिशयोक्ति, अपह्न ति, तुल्ययोगिता, अप्रस्तुतप्रशंसा, निदर्शना तथा सन्देह अलङ्कारों की उत्पत्ति विभिन्न लक्षणों एवं मूल अलङ्कारों के संयोग से हुई है। समासोक्ति में उपमा तथा कार्य के पाठभेद अर्थापत्ति लक्षण के तत्त्वों का सम्मिश्रण है। अतिशयोक्ति के स्वरूप की कल्पना में रूपक तथा अतिशय से तत्त्व ग्रहण किया गया है। अपह्न ति की सृष्टि उपमा तथा मिथ्याध्यवसाय के योग से हुई है। तुल्ययोगिता का मूल उपमा अलङ्कार तथा सिद्धि एवं गुणानुवाद लक्षणों में है। अप्रस्तुतप्रशंसा के स्वरूप-विन्यास में उपमा के साथ मनोरथ एवं प्रोत्साहन लक्षणों ने योगदान दिया है। निदर्शना की कल्पना में दृष्टान्त तथा उदाहरण लक्षणों के साथ उपमा अलङ्कार के तत्त्वों का योग है तथा सन्देह अलङ्कार के उद्गम का स्रोत उपमा अलङ्कार तथा संशय लक्षण हैं। ६. गुण-धारणा से अनुप्राणितः-भामह को स्वभावोक्ति अलङ्कार की कल्पना की प्रेरणा भरत के अर्थव्यक्ति गुण से मिली होगी। ७. एकाधिक गुणों के योग से उद्भूत :-भाविक अलङ्कार की रूप-रचना में भामह भरत की उदारता तथा अर्थव्यक्ति गुण-धारणा से प्रभावित जान पड़ते हैं, यद्यपि इसमें परोक्षार्थ वर्णन की कल्पना उनकी मौलिक उद्भावना है। ८. लक्षण एवं गुण के समन्वय से सम्पन्नः-उदात्त अलङ्कार में भामह ने भरत के उदार या उदात्त गुण, गुणकीर्तन तथा अतिशय लक्षण के प्रमुख विधायक तत्त्वों का समन्वय कर दिया है । ९. रस तथा भाव को धारणा से निःसृतः-रसवत् तथा ऊर्जस्वी अलङ्कारों का सम्बन्ध नाट्याचार्य भरत की रस तथा भाव-सम्बन्धी धारणा से है। रसवत् रस से तथा ऊर्जस्वी दीप्त भाव से सम्बद्ध है।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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