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७७४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण को विशिष्ट रूप देने के लिए परिचित वस्तुओं का सहारा लेना अनिवार्य हो जाता है। खट्टी नारङ्गी की खटाई का बोध कराने के लिए 'नीबू-सा खट्टा' का प्रयोग किया जाता है। किसी मीठी वस्तु को मिसरी या गुड़ के समान मीठी कहने में उसकी मिठास को परिचित वस्तु की मिठास से तुलना कर विशिष्ट रूप देने का प्रयास रहा करता है। बोलियों में 'खट्टा चुक्क' अर्थात् नीबू के रस से बने चूक के समान बहुत खट्टा आदि का प्रयोग ऐसा ही प्रयास है। किसी परिचित वस्तु के स्वाद से तुलना किये बिना खट्टा, मीठा आदि कहने का कोई निश्चित अर्थ-ग्रहण नहीं किया जा सकता। वर्गों के लाल, पीला, नीला, हरा, काला, उजला आदि जो नाम हैं, वे तत्तत् वर्णों का केवल सामान्य रूप ही बताते हैं। किसी एक वर्ण के अनेक स्वरूपों को निश्चित रूप में निर्दिष्ट करने के लिए किसी परिचित वस्तु के वर्ण को उपमान के रूप में लाना आवश्यक होता है। इसी क्रम में लाल-टेसू, लाल-बिम्ब, लाल-मजीठ आदि का प्रयोग किया जाता है। टेसू, बिम्ब आदि उपमान ही लाल के विशिष्ट रूप का बोध कराते हैं। अनेक वर्णों के तो नाम भी उसके समान परिचित वस्तु के आधार पर ही रखे गये हैं। नारङ्गी के वर्ण के समान वर्ण को नारङ्गी रङ्ग, बैगन के समान रङ्ग को बैगनी रङ्ग आदि कहा जाने लगा है । मोर वर्ण, मटमैला रङ्ग, धानी रङ्ग, आसमानी रङ्ग, गुलाबी रङ्ग, सिन्दूरी रङ्ग, टमाटर रङ्ग आदि विभिन्न रङ्ग हैं, जिनका नामकरण परिचित वस्तु के रङ्ग के सादृश्य के आधार पर हुआ है । अंगरेजी में Snow white Bottle green, feather brown, orange, cream, आदि वर्ण भी तत्तत् परिचित वस्तुओं के रङ्ग के आधार पर ही व्यवहृत हुए हैं। इन प्रयोगों पर विचार करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मूलतः ऐसे पद अलङ्कार के रूप में प्रयुक्त हुए होंगे। ( इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि इन अलङ्कारों का प्रयोग लोक-मुख में हुआ या काव्य में । ) लाल टेसू में टेसू उपमान है और उस पद का अर्थ है पलास के फूल के समान लाल । ऐसे प्रयोग इतनी अधिक मात्रा में होने लगे कि अब इस बात पर लोगों का ध्यान भी नहीं जाता कि लाल-टेसू, लालबिम्ब जैसे प्रयोग अलङ्कत प्रयोग हैं और उपमानोपमेय भाव पर आधृत हैं।
बहुत-से अलङ्कत प्रयोग व्यवहार में घिसते-घिसते सामान्य उक्तिमात्र बनकर व्यवहृत होने लगते हैं। उनके मूल में निहित अलङ्कार पर किसी का ध्यान भी नहीं जाता। नर-केशरी, नर-पिशाच, कुलाङ्गार, कुलभूषण, कुल-कलङ्क बादि असंख्य प्रयोग बोल-चाल में प्रयुक्त होते हैं। वक्ता ऐसे.