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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
भाविक और उदात्त ___ भाविक में भूत और भावी अर्थ का यथारूप वर्णन होता है । प्रत्यक्ष रूप में वर्णन किये जाने पर भी भूत-भावी अर्थ की स्थिति पर कुछ आरोप नहीं किया जाता है; पर उदात्त में वस्तु पर समृद्ध वस्तु का वर्णन किया जाता है। इस प्रकार अनारोपित वस्तु-वर्णन भाविक का तथा आरोपित वस्तु-वर्णन उदात्त का व्यवच्छेदक है।' स्वभावोक्ति और रसवत्
स्वभावोक्ति और रसवत्-दोनों में वर्ण्य वस्तु के साथ भावक का हृदयसम्वाद सम्भव होता है; पर दोनों का भेद यह है कि स्वभावोक्ति में केवल वस्तु-स्वभाव के साथ पाठक के हृदय का सम्वाद होता है, जबकि रसवत् में वर्णित विभावादि वस्तु की चित्तवृत्ति के साथ भावक का हृदय-सम्वाद होता है, जिससे रसानुभूति सम्भव होती है । • स्वभावोक्ति और उदात्त
स्वभावोक्ति में वस्तु-स्वभाव का यथारूप वर्णन होता है। उसमें कवि वस्तु के स्वभाव पर कुछ आरोप नहीं करता, पर उदात्त में वर्ण्य वस्तु पर :: कवि समृद्धि का आरोप कर उसका वर्णन करता है। इस प्रकार अनारोपित
वस्तु स्वभाव का वर्णन स्वभावोक्ति का तथा आरोपित वस्तुवर्णन उदात्त का व्यवच्छेदक लक्षण है। सम और विषम
सम और विषम एक दूसरे का विपरीतधर्मा है। सम में योग्य वस्तु के साथ उसके योग्य वस्तु का योग होता है; पर विषम में इसके विपरीत किसी
१. "भाविके"यथास्थितवस्तुवर्णनम् । तद्विपक्षत्वेनारोपितवस्तु
वर्णनात्मन उदात्तस्यावसरः । –रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० २२८ २. न च हृदयसम्वादमात्रण स्वभावोक्तिरसवदलङ्कारयोरभेदः । वस्तु
स्वभावसम्बादरूपत्वात् स्वभावोक्त: चित्तवृत्तिसम्वादरूपत्वाच्च रसवदलङ्कारस्य, उभयसम्वादसम्भवे तु समावेशोऽपि घटते !
-वही, पृ० २२५ ३. स्वभावोक्तौ भाविके च यथास्थितवस्तुवर्णनम् । तद्विपक्षत्वेनारोपितवस्तुवर्णनात्मन उदात्तस्यावसरः ।
-वही, पृ० २२८