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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [ ७५५ ललित और अप्रस्तुतप्रशंसा ललित में प्रस्तुत धर्मी के वृत्तान्त का साक्षात् वर्णन कर उसके प्रतिबिम्ब रूप में किसी अप्रस्तुत वृत्तान्त का वर्णन किया जाता है । अतः, ललित में धर्मी प्रस्तुत ही रहता है । यही उसका अप्रस्तुतप्रशंसा से व्यावर्तक है । अप्रस्तुतप्रशंसा में अप्रस्तुत धर्मी का वर्णन किया जाता है और उससे प्रस्तुत की व्यञ्जना होती है । अप्पय्य दीक्षित तथा जगन्नाथ ने प्रस्तुत धर्मी का होना ही ललित का व्यवच्छेदक माना है । ललित और समासोक्ति अप्पय्य दीक्षित ने ललित और समासोक्ति का भेद बताते हुए कहा है कि समासोक्ति में प्रस्तुत वृत्तान्त का वर्णन होता है और उससे अप्रस्तुत वृत्तान्त की स्फूर्ति होती है, पर ललित में प्रस्तुत वृत्तान्त का वर्णन नहीं किया जाता । इसमें अप्रस्तुत वृत्तान्त से ही प्रस्तुत वृत्तान्त गम्य होता है । ललित और अतिशयोक्ति ललित में प्रस्तुत वृत्तान्त का उल्लेख न कर केवल अप्रस्तुत वृत्तान्त का उल्लेख किया जाता है । यह प्रश्न हो सकता है कि विषय का उपादान न कर केवल विषय के उपादान से अभेदाध्यवसान-रूप अतिशयोक्ति से ललित को अभिन्न क्यों न माना जाय ? अप्पय्य दीक्षित तथा पण्डितराज जगन्नाथ ऐसे प्रश्न की सम्भावना से अवगत थे । अतः, उन्होंने भेद में अभेद-रूप अतिशयोक्ति से ललित का भेद-निरूपण किया है । जगन्नाथ की यह तर्कपुष्ट मान्यता है कि अतिशयोक्ति में किसी विशेष अन्य पदार्थ का ही अन्य पदार्थ से अभेदाध्यवसान होता है, पर ललित का वैशिष्ट्य यह है कि उसमें एक धर्मी के व्यवहार से अन्य के व्यवहार का अभेदाध्यवसान होता है । इस प्रकार पदार्थ का १. नेयम प्रस्तुप्रशंसा, प्रस्तुतधर्मिकत्वात् । - अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द, पृ० १४७ तथा अप्रस्तुतप्रशंसावारणाय प्रकृतधर्मिणीति । - जगन्नाथ, रसगङ्गा० पृ० ७६२ २. नापि ( ललितम् ) समासोक्तिः, प्रस्तुतवृत्तान्ते वर्ण्यमाने विशेषणासाधारण्येन सारूप्येण वाऽप्रस्तुतवृत्तान्तस्फूर्त्य भावात् । - अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द वृत्ति, पृ० १४७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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