________________
७५४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण विकल्प और समुच्चय __ दो वस्तुओं में विकल्प-दशा होने पर उनमें औपम्य की कल्पना विकल्प अलङ्कार है। विकल्प में तुल्यबल से परस्पर विरुद्ध वस्तुओं की उपस्थिति होती है। विरुद्ध वस्तुओं की युगपत् ( एक ही समय ) प्राप्ति असम्भव होने से एक का चुनाव करना पड़ता है। समुच्चय विकल्प का विपरीतधर्मा अलङ्कार है। समुच्चय में युगपत् पदार्थों का अन्वय होता है। विकल्प में युगपत् पदार्थों की स्थिति असम्भव होने तथा समुच्चय में युगपत् पदार्थों का अन्वय होने के कारण अलङ्कार सर्वस्वकार तथा पण्डितराज जगन्नाथ ने विकल्प को समुच्चय का प्रतिपक्षी कहा है। ललित और निदर्शना
ललित में प्रकृत व्यवहार का उल्लेख न कर उसके प्रतिबिम्बभूत किसी अप्रकृत वृत्तान्त का वर्णन किया जाता है। दण्डी, मम्मट आदि इसे आर्थी निदर्शना से अभिन्न मानते थे।२ अप्पय्य दीक्षित ने ललित को स्वतन्त्र अलङ्कार मानकर निदर्शना से उसका यह भेद माना है कि निदर्शना में प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत वृत्तान्तों का शब्दतः उपादान कर दोनों में ऐक्य का आरोप होता है; पर ललित में प्रकृत वृत्तान्त का शब्दतः उपादान नहीं होता। 3 पण्डितराज जगन्नाथ ने भी इसी आधार पर निदर्शना से ललित का भेद करने के लिए ललित के लक्षण में 'प्रकृतव्यवहारानुल्लेखेन' पद का उल्लेख किया है । निदर्शना में प्रकृत तथा अप्रकृत वृत्तान्तों का उल्लेख तथा ललित में केवल अप्रकृत वृत्तान्त का उल्लेख दोनों का विशेषाधायक है। १. तस्मात् समुच्चयप्रतिपक्षभूतो विकल्पाख्योऽलङ्कारः ।
-रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० १९८ तथा अयं ( विकल्पः ) च समुच्चयस्य प्रतिपक्षभूतो व्यतिरेक इवोपमायाः ।
-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७७३ २. नेदं ( ललितम्) पृथगलङ्कारान्तरम्, किं तु आर्थी निदर्शनेति दण्डी
मम्मटादयः । -कुवलयानन्द अलङ्कारञ्चन्द्रिका, टीका पृ०१४७ ३. नापि ( ललितम् ) निदर्शना, प्रस्तुताप्रस्तुतवृत्तान्तयोः शब्दोपात्तयोरैक्यसमारोप एव तस्याः समुन्मेषात् ।
-अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द वृत्ति, पृ० १४७ ४. निदर्शनावारणाय तृतीयान्तम् । अत्र प्रकृते मिणिविषयमनुक्त्वैव.. अप्रकृत व्यवहारो विषय्युपात्तः । विषयोपादाने तु निदर्शनैव ।
-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७६२