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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [७५१ दिखाने में जो चमत्कार रहता है, उससे प्रस्तुत पर अप्रस्तुत का आरोप कर प्रस्तुत में अप्रस्तुतनिष्ठ धर्म की प्रतिपत्ति का चमत्कार भिन्न होता है। अतः, विरोध से रूपक भिन्न अलङ्कार है।' पण्डितराज की यह युक्ति उचित ही है। विचित्र और विषम _ विचित्र में अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिए इष्ट-विपरीत आचरण का वर्णन होता है। 'उन्नति पाने के लिए किसी के आगे झुकने' आदि का वर्णन इष्टसिद्ध्यर्थ इष्ट-विपरीत आचरण का उदाहरण है। जगन्नाथ ने एक शङ्का की सम्भावना कर उसका समाधान किया है। यह शङ्का की जा सकती है कि 'अननुरूप का सङ्घटन' विषम कहलाता है। विचित्र में भी कारण के अननुरूप कार्य का वर्णन होता है, फिर विचित्र को विषम का ही अङ्ग क्यों न मान लिया जाय? इस शङ्का का समाधान कठिन नहीं। विचित्र का सौन्दर्य इष्टविपरीत कार्य में व्यक्ति के प्रवृत्त होने में है, जबकि विषम में अननुरूप कार्यकारण आदि की घटना में चमत्कार रहता है। व्यक्ति के आचारण से सापेक्ष और निरपेक्ष होने के आधार पर विचित्र और विषम का भेद स्पष्ट है।' विशेष और प्रहर्षण विशेष के तीन रूप स्वीकृत है-(१) प्रसिद्ध आधार के अभाव में भी आधेय की स्थिति का वर्णन, (२) एक आधार में रहने वाले एक आधेय की एक ही समय अनेक आधारों में स्थिति का वर्णन तथा (३) किसी कार्य को करते हुए अन्य असम्भावित एवं अशक्य कार्य का सम्पादन कर देने का वर्णन । _ विशेष के तृतीय भेद से प्रहर्षण का भेद यह है कि प्रहर्षण के एक भेद में वाञ्छित से अधिक अर्थ की प्राप्ति का वर्णन होता है; पर विशेष के तीसरे भेद में अशक्य कार्य के अनायास सम्पन्न कर लेने का वर्णन होता है । जगन्नाथ की मान्यता है कि विशेष में अशक्य कार्य का सम्पादनः आरब्ध कार्य के साथ अभेदाध्यवसान के रूप में दिखाया जाता है; पर प्रहर्षण में वाञ्छित फल के १. द्रष्टव्य-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ६८२ २. न च कारणाननुरूपं कार्यमिति विषमभेदोऽयं (विचित्रम्) वाच्यः, विषमे पुरुषकृतेरपेक्षणात् । कार्यकारणगुणवैलक्षण्येनैव तद्भदनिरूपणाच्च । -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७१६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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