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________________ ७३० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अतिशयोक्ति और सन्देह अतिशयोक्ति में प्रकृत में अप्रकृत के तादात्म्य का आहार्य निश्चय होता है, जबकि सन्देह में ज्ञान अनिश्चयात्मक तथा द्व'कोटिक रहता है।' एक वस्तु में अन्य वस्तु के तादात्म्य का आहार्य निश्चय अतिशयोक्ति का तथा दो वस्तुओं में संशयात्मक ज्ञान सन्देह का व्यवच्छेदक है। अतिशयोक्ति और असङ्गति कार्यकारणपौर्वापर्य-विपर्यय-रूप अतिशयोक्ति और असङ्गति में भेद यह है कि अतिशयोक्ति में कार्य और कारण के पौर्वापर्य-विपर्यय (अर्थात् कारण के पूर्व कार्य की स्थिति) का वर्णन होता है और असङ्गति में कार्य और कारण का वैयधिकरण्य दिखाया जाता है । कारण और कार्य की भिन्नदेशता असङ्गति का तथा कार्य और कारण के स्वाभाविक क्रम का विपर्यय अतिशयोक्ति का वैशिष्ट्याधायक है। प्रतिवस्तूपमा और निदर्शना प्रतिवस्तूपमा में दो वाक्यार्थ वस्तु-प्रतिवस्तु-भाव से प्रस्तुत किये जाते हैं ।। निदर्शना में भी दो वाक्यार्थ प्रस्तुत किये जाते हैं. जिनके बीच औपम्य का पर्यवसान होता है। दोनों में एक भेद यह है कि निदर्शना में साधारण धर्म का उपन्यास नहीं होता; पर प्रतिवस्तूपमा में वस्तुप्रतिवस्तु-भाव से-वस्तुतः,. अभिन्न साधारण धर्म का शब्द-भेद से अलग-अलग वाक्यों में उल्लेख करसाधारण धर्म का उपन्यास किया जाता है। दूसरा भेद यह है कि निदर्शना में दोनों वाक्यार्थ परस्पर सापेक्ष रहते हैं; पर प्रतिवस्तूपमा में दोनों अपने-आप में पूर्ण; अतः परस्पर निरपेक्ष रहते हैं । १. अध्यवसानम् अप्रकृततादात्म्यारोपः स च भेदप्रतिपत्त्यसहकृताहार्य-. निश्चयरूपः। तेन रूपकस्य सन्देहोत्प्रेक्षयोश्च व्यवच्छेदः........ अन्ययोश्च संशयत्वात्......।-काव्यप्रकाश, सारबोधिनी, से बालबोधिनी टीका में उद्ध त, पृ० ६२६ २. निदर्शनायां साधारणधर्मस्यानुपन्यासः वाक्यार्थयोः स्वस्वार्थे सापेक्षत्वं च अत्र (प्रतिवस्तूपमायां) तु साधारणधर्मस्य वस्तुप्रतिवस्तुभावेन निर्देशः वाक्यार्थयोः स्वस्वार्थे निरपेक्षत्वं चेत्यनयोः परस्परं भेदः ।..." -काव्यप्रकाश, झलकीकरकृत टीका पृ० ६३४:
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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