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________________ ५.७१८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण कारणामाला और सार कारणमाला में पदों का ग्रथन इस रूप में होता है कि प्रत्येक पूर्ववर्ती • पद अपने उत्तरवर्ती का कारण बनता जाता है। इस प्रकार कारणों की एक शृङ्खला बन जाती है; पर सार में पदों की सङ्घटना इस रूप में की जाती है कि प्रत्येक उत्तरवर्ती पद पदार्थ के अधिकाधिक उत्कर्ष का बोध कराता चलता है। जगन्नाथ के अनुसार कारणमाला का अलङ्कारत्व शृङ्खला-मात्र में है; • पर सार का क्रमशः एक से दूसरे अर्थ के वैशिष्ट्य प्रतिपादन में ।' कारणमाला और मालादीपक मालादीपक में प्रत्येक पूर्ववर्ती अर्थ को अपने-अपने उत्तरवर्ती अर्थ का उपकारक बताया जाता है; जबकि कारणमाला में पूर्व-पूर्व उत्तर-उत्तर के प्रति हेतु रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कारणमाला से उसका भेद यह भी है कि उसमें सभी पदों का एक क्रिया से अन्वय दिखाया जाता है (जैसा कि अप्पय्य दीक्षित आदि ने स्वीकार किया है) पर कारणमाला में एक क्रिया का अन्वय • नहीं होता। मम्मट के टीकाकार वामन झलकीकर का कथन है कि मालादीपक का व्यवच्छेदक उसका एक क्रियान्वय ही है। कारणमाला और एकावली कारणमाला में उत्तर-उत्तर के प्रति पूर्व-पूर्व का कारणत्व रहता है; पर एकावली में उत्तर-उत्तर के प्रति पूर्व-पूर्व का अथवा पूर्व-पूर्व के प्रति उत्तरउत्तर का विशेषणत्व रहता है। एकावली और मालादीपक रुय्यक, मम्मट आदि आचार्यों ने मालादीपक में प्रत्येक पूर्ववर्ती पदार्थ का अपने उत्तरवर्ती पदार्थ के प्रति गुणावह होना अपेक्षित माना है। इस प्रकार उनके मतानुसार एकावली से मालादीपक का भेद यह होगा कि एकावली में १. ..."तस्मात्कारणमालादिर्यथा शृङ्खलैकविषयो न तथा सारः शक्यो वक्त म् । गुणस्वरूपाभ्यां पूर्व-पूर्व-वैशिष्ट्यं-सार इति तु लक्षणं सारस्य युक्तम् । -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७३८ -२. मालादीपके उत्तरोत्तरं प्रति पूर्वपूर्वस्यार्यस्य हेतुत्वेऽपि सर्वेषामेकक्रियान्वयः अत्र (कारणमालायां) तु न तथेति ततो भेदः । -काव्यप्रकाश, झलकीकरकृत टीका, पृ०७०६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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