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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ ४७ अपह नुति अपह नुति अलङ्कार में उपमेय का अपह्नव तथा उपमान का अभिधान होता है। इस अलङ्कार के मूल में उपमा है। प्रस्तुत का निषेध तथा अप्रस्तुत का कथन होने से इसे 'किञ्चिदन्तर्गतोपमा' कहा गया है। अभिनवगुप्त ने निर्देश किया है कि भरत की उपमा के साथ उनके मिथ्याध्यवसाय-नामक लक्षण के योग से अपह नुति अलङ्कार का स्वरूप निष्पन्न हुआ है।' मिथ्याध्यवसाय लक्षण के एक पाठ में यह कहा गया है कि इसमें अर्थ का अन्यथात्व-प्रतिपादन होता है ।२ किसी वस्तु के स्वरूप का निषेध कर उसका अन्यथा-भाव प्रतिपादित करना मिथ्याध्यवसाय है । यह अन्यथाभाव सादृश्य के कारण होता है। अपह नुति अलङ्कार में वर्ण्य वस्तु के स्वरूप का अपह्नव तथा अवर्ण्य ( उपमान ) के रूप में उसका ( अन्यथात्व ) प्रतिपादन होता है । स्पष्ट है कि उपमा तथा मिथ्याध्यवसाय के योग से अपह नुति का रूप-निर्माण हुआ है। विशेषोक्ति भामह के अनुसार जहाँ किसी वस्तु के एक गुण की हानि होने पर विशेषता के अभिधान के लिए गुणान्तर का सद्भाव दिखाया जाता हो वहाँ 'विशेषोक्ति अलङ्कार होता है। प्रस्तुत अलङ्कार का स्वरूप भामह की स्वतन्त्र उद्भावना है। विरोध प्रस्तुत अलङ्कार में वर्णन के वैशिष्ट्य के लिए गुण या क्रिया के विरोधी अन्य क्रिया का कथन होता है । ४ यह विरोध स्थिति के अनुरोध से उपपन्न १. 'उपाध्यायमतं तु-लक्षणबलादलङ्काराणां वैचित्र्यमागच्छति तथा हि-..."मिथ्याध्यवसायेनापह नुति.......।' -अभिनव, ना० शा० अ० भा० पृ० ३२१ २. विचारस्यान्यथाभावस्तथा दृष्टापदृष्टयोः । सन्देहात् कल्प्यते यत्र सविक्षेपो विपर्ययः । ना० शा० अ० भा० पृ० ३०० ३. एकदेशस्यविगमे या गुणान्तरसंस्थितिः । विशेषप्रथनायासौ विशेषोक्तिर्मता यथा ।—भामह, काव्यालं०,३,२३ - "४. गुणस्य वा क्रियाया वा विरुद्धान्यक्रियाभिधा। या विशेषाभिधानाय विरोधं तं विदुबु धाः ॥-वही, ३, २५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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