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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [ ६७३ व्यतिरेक का उपमा से यह भेद है कि उपमा में अलङ्कार-योजना के मूल में उपमान के गुणाधिक्य की धारणा निहित रहने पर भी उसका उपमेय की अपेक्षा आधिक्य वर्णित नहीं होता, अपितु उपमान समान ही उपमेय को भी गुणवान बताया जाता है, पर व्यतिरेक में उपमान का आधिक्य भी स्पष्टतः प्रतिपादित होता है । एक का दूसरे की अपेक्षा अपकर्ष-वर्णन कर के भी व्यतिरेक की रूप-योजना होती है, क्योंकि उससे एक का दूसरे से आधिक्य - व्यतिरेकसूचित होता है । अतः, व्यतिरेक में प्रत्यक्ष रूप से या प्रकारान्तर से एक वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु का ( उपमान तथा उपमेय में से किसी एक की अपेक्षा दूसरे का) आधिक्य - वर्णन होता है; पर उपमा में उपमान, तथा उपमेय का सादृश्य निरूपित होता है । विश्वनाथ ने दोनों का एक भेदक तत्त्व यह माना है कि व्यतिरेक वैधर्म्य से भी होता है; पर उपमा में विरुद्ध धर्म का अभाव आवश्यक है ।' अप्पय्य दीक्षित के अनुसार उपमान और उपमेय का विशेष या वैलक्षण्य-वर्णन व्यतिरेक का लक्षण है । २ इस दृष्टि से उपमा से व्यतिरेक का यह भेद स्पष्ट है कि जहाँ उपमा में उपमान और उपमेय का सादृश्य दिखाया जाता है, वहाँ व्यतिरेक में दोनों का वैलक्षण्य निरूपित होता है । उपमा श्रर प्रतीप प्रतीप उपमा का विपरीतधर्मा अलङ्कार है । इसीमें प्रतीप नाम की सार्थकता है । दण्डी ने उपमानोपमेय-भाव की प्रसिद्धि के वैपरीत्य को प्रतीप नामकरण का हेतु माना है । उपमा में प्रस्तुत वस्तु की अप्रस्तुत वस्तु से उपमा देने का जो प्रसिद्ध क्रम है, उसके विपरीत प्रतीप में प्रस्तुत के साथ ही अप्रस्तुत की उपमा दी जाती है; अर्थात् इसमें प्रसिद्ध उपमान को उपमेय के रूप में कल्पित कर लिया जाता है । इस वैपरीत्य की प्रकृति को दृष्टि में रखकर ही दण्डी ने प्रतीप को विपर्यासोपमा नाम से उपमा का एक भेद माना है । 3 प्रतीप में उपमेय की उपमान के रूप में कल्पना का उद्देश्य वर्ण्य वस्तु का अप्रस्तुत की अपेक्षा आधिक्य निरूपण होता है । हम इस तथ्य पर विचार कर १. साम्यं वाच्यमवैधर्म्य वाक्यैक्य उपमा द्वयोः । तथा...व्यतिरेके च वैधर्म्यस्याप्युक्तिः । इत्यस्या ( उपमाया ) भेद: । - विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, १७ तथा उसकी वृत्ति, पृ० ५९७ २. व्यतिरेको विशेषश्चेदुपमानोपमेययोः ।- - अप्पय्य दी० कुवलया०, ५७ ३. द्रष्टव्य - दण्डी, काव्यादर्श, २,१७ ४३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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