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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ६५३ आदि का अन्य अर्थ भी प्रकाशित कराया जाता है, वहाँ निरुक्ति अलङ्कार होता है।' निरुक्ति का अर्थ है शब्द का निर्वचन या उसके व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ का निर्देश । इस अलङ्कार में नाम की व्युत्पत्ति के आधार पर उसके प्रसिद्ध अर्थ के साथ अन्यार्थ प्रकाशन की धारणा व्यक्त की गयी है। उदाहरण के लिए कनिष्ठिका के ठीक बाद रहने वाली अनामिका उँगली के यौगिक अर्थ ( जिस पर कोई नाम नहीं आ सके ) को दृष्टि में रखकर जहाँ यह कल्पना की गयी कि कवि-गणना के प्रसङ्ग में कभी कनिष्ठिका पर कालिदास का नाम गिना गया; पर आज तक भी उनके समकक्ष गिने जाने वाले दूसरे कवि का नाम नहीं मिलने से कनिष्ठिका के आगे की उँगली अनामिका का नाम सार्थक है, वहाँ अप्पय्य दीक्षित आदि निरुक्ति मानेंगे; क्योंकि उसमें अनामिका अपने प्रसिद्ध नाम के साथ अन्य योगार्थ का भी प्रकाशन करती है। जगन्नाथ आदि ने इसका स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार नहीं किया है। निरुक्ति-धारणा में एकरूपता ही रही है। निरुक्ति के उदाहरणों में अन्यार्थ प्रकाशन श्लेष-महिमा से माना जा सकता है। अतः निरुक्ति को श्लेष का ही एक रूप माना जा सकता है। प्रतिषेध प्रतिषेध अलङ्कार में प्रसिद्ध अर्थात् सर्वविदित निषेध का अनुकीर्तन अपेक्षित" माना गया है ।२ ज्ञात निषेध का प्रतिपादन अपने आप में कोई अर्थ नहीं रखता, उसकी सार्थकता इस बात में होती है कि विदित निषेध का प्रदर्शन करने में वक्ता का कोई गूढ आशय छिपा रहता है। महाभारत युद्ध में शकुनी के प्रति यह उक्ति कि 'यह युद्ध । त-क्रीड़ा नहीं है' प्रतिषेध अलङ्कार का एक उदाहरण है। युद्ध में चूत का निषेध अपने आप में कोई अर्थ नहीं रखता। युद्ध य त नहीं है, यह तथ्य तो विदित ही है । निषेध प्राप्त का होता है। युद्ध में घ तत्व की प्राप्ति ही नहीं होती। अतः, अप्राप्त का निषेध होने के कारण उक्त कथन व्यर्थ पड़कर वक्ता के एक विशेष आशय को प्रकट करता है। वक्ता का आशय यह है कि तुम्हारा कौशल घ् त-क्रीड़ा तक ही है; युद्धक्षेत्र में तुम्हारा कौशल नहीं चलेगा। अतः प्रतिषेध लक्षण का सार यह है कि १. निरुक्तिर्योगतो नान्मामन्यार्थत्वप्रकल्पनम् । -अप्पय्यदीक्षित कुवलयानन्द १६४ २. प्रतिषेधः प्रसिद्धस्य निषेधस्यानुकीर्तनम् ।-वही, १६५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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