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________________ .६२० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण है। जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि ने रुय्यक की तरह गम्य अर्थ का भङ ग्यन्तर से अभिधान पर्यायोक्त का लक्षण माना है।' पण्डितराज जगन्नाथ ने भामह, दण्डी आदि की तरह विवक्षित अर्थ का भङ ग्यन्तर से प्रतिपादन पर्यायोक्त का लक्षण माना है ।२ निष्कर्षतः, विवक्षित 'अर्थ का अभिधा से कथन न कर भङ ग्यन्तर से अभिधान या व्यङग्य अर्थ का अभिधा से प्रतिपादन पर्यायोक्त का लक्षण माना गया । अभिधा वृत्ति को छोड़ भङ ग्यन्तर से कथन तथा व्यङग्य के अभिधान की धारणा मिलती-जुलती ही है। भामह से लेकर जगन्नाथ तक प्रायः एक-सी ही मान्यता पर्यायोक्त के सम्बन्ध में व्यक्त की गयी है। प्रश्न यह है कि व्यङग्य का अभिधान या शब्दतः कथन सम्भव कैसे होगा? व्यङ ग्य-अर्थ की प्रतीति तो वाच्य-अर्थ के बोध के बाद ( वच्यार्थ के अतिरिक्त) होती है। जगन्नाथ ने इसके उत्तर में कहा है कि एक ही अर्थ 'प्रकार-भेद से वाच्य भी हो सकता है और व्यङ,ग्य भी। पर्यायोक्त में यह कथन की भङ्गी का वैशिष्ट्य है कि जो अर्थ व्यङग्य हो, उसी का प्रकारान्तर से अभिधान कर दिया जाय । अतः, पर्यायोक्त का लक्षण है अभिधा-व्यापार को छोड़ अवगम-व्यापार से अभीष्ट अर्थ का प्रतिपादन अथवा व्यङ ग्य-अर्थ का अभिधान या शब्दतः कथन । प्रस्तुताङ कुर प्रस्तुताङ्क र अलङ्कार की कल्पना जयदेव के पूर्व नहीं हुई थी। जयदेव तथा उनके मतानुयायी अप्पय्य दीक्षित को छोड़ अन्य आचार्यों ने इस अलङ्कार का अस्तित्व स्वीकार भी नहीं किया है। इसके स्वरूप की कल्पना के बाद जगन्नाथ आदि आचार्यों ने अलङ्कार-निरूपण किया है; पर, उन्होंने प्रस्तुताङ कुर का निरूपण नहीं किया। अप्पय्य दीक्षित के अनुयायी हिन्दी के रीति-आचार्यों ने उन्हीं के मतानुसार प्रस्तुताङ कुर को परिभाषित किया है। फलतः, प्रस्तुताङ कुर के स्वरूप में एकरूपता ही रही है। - अप्पय्य दीक्षित ने प्रस्तुत से अन्य प्रस्तुत के गम्य होने में प्रस्तुताङ कुर अलङ्कार माना है। 3 पीछे इसी लक्षण का हिन्दी में रूपान्तर होता रहा। १. पर्यायोक्त तु गम्यस्य वचो भङ ग्यन्तराश्रयम् । कुवलयानन्द, ६८ २. विवक्षितस्यार्थस्य भङ ग्यन्तरेण प्रतिपादनं पर्यायोक्तम् । -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर पृ० ६४९-५० ३. प्रस्तुतेन प्रस्तुतस्य द्योतने प्रस्तुताङ कुरः।-अप्पय्य दी० कुवलयानन्द,६७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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