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________________ ६०८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण आधार पर ही व्याघात को परिभाषित कर दिया । सम्भवत: इसीलिए उन्होने विशेषोक्ति का निरूपण नहीं किया । रुद्रट के अनुसार जहाँ अन्य कारण से किसी तरह की बाधा के न होने पर कोई कारण कार्य का उत्पादन नहीं कर सके, वहाँ व्याघात अलङ्कार माना जाता है ।' कारण का यदि बाधक तत्त्व नहीं रहे तो उससे कार्य की उत्पत्ति अवश्य होनी चाहिए । लेकिन बाधक के नहीं रहने पर भी कारण से कार्य की उत्पत्ति नहीं होने के वर्णन में अलङ्कारत्व रहता है । रुद्रट इसे व्याघात कहेंगे, पर अन्य आचार्यों ने उसे विशेषोक्ति कहा है । मम्मट ने अबाधित कारण से भी कार्य की अनुत्पत्ति में विशेषोक्ति का सद्भाव मानकर उससे स्वतन्त्र व्याघात के स्वरूप की कल्पना की है । उनकी मान्यता है कि जहाँ किसी कर्त्ता के द्वारा जिस उपाय से कार्यसाधन किये जाने का निर्देश हो, उसी उपाय से ( उस कर्त्ता के विजिगीषु) अन्य व्यक्ति के द्वारा उस कार्य को अन्यथा करने का वर्णन व्याघात है । २ जिस उपाय से कोई कार्य - साधन करे, उसी उपाय से दूसरा उस कार्य को अन्यथा कर दे, इस वर्णन में अवश्य ही चमत्कार रहता है । अतः ऐसे स्थल में व्याघात अलङ्कार का सद्भाव माना जाता है। इसमें कर्त्ता की अभीष्ट सिद्धि के साधन से ही दूसरे के द्वारा उसके इष्ट का व्याघात या हनन होने से इसे व्याघात का जाता है । मम्मट के उत्तरवर्ती प्रायः सभी आचार्यों ने उनकी व्याघात-विषयकः मूल धारणा को स्वीकार किया है । रुय्यक ने मम्मट - कल्पित व्याघात- लक्षण को स्वीकार कर उसके एक रूप की कल्पना की । उन्होंने मम्मट के मतानुसार किसी उपाय से साधित कार्य का अन्य के द्वारा उसी उपाय से अन्यथाकरण व्याघात का लक्षण माना । व्याघात के दूसरे रूप की कल्पना करते हुए उन्होंने कहा कि किसी कार्य के सम्पादन के लिए सम्भावित कारण को जहाँ दूसरा ब्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध कार्य का निष्पादक बता दे, वहाँ भी व्याघात होता है । 3 3. १. अन्यरप्रतिहतमपि कारणमुत्पादनं न कार्यस्य । यस्मिन्नभिधीयेत व्याघातः स इति विज्ञेयः ॥ - रुद्रट, काव्यालं ० ६, ५२ २. यद्यथा साधितं केनाप्यपरेण तदन्यथा । तथैव यद्विधीयेत सव्याघात इति स्मृतः ॥ - मम्मट, काव्यप्र० १०,२०६ ३. यथासाधितस्य तथैवान्येनान्यथाकरणं व्याघातः । तथा सौकर्येण कार्यविरुद्ध क्रिया च ॥ रुय्यक, अलं० सू० ५१-५२०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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