________________
५८४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण का आदान तद्गुण की तरह अनुगुण में भी होता है; पर इसमें अपने पूर्व-सिद्ध गुण के उत्कर्ष के लिए ही अन्य वस्तु के उत्कृष्ट गुण का ग्रहण होता है । ___अप्पय्य दीक्षित के परवर्ती आचार्य जगन्नाथ ने अनुगुण का निरूपण नहीं किया है। ___ हिन्दी रीति-साहित्य में जयदेव तथा अप्पय्य दीक्षित की अलङ्कार-विषयक मान्यता का अनुगमन करने वाले आचार्यों की एक लम्बी परम्परा रही है। अतः, हिन्दी में अनुगुण के स्वरूप का निरूपण अनेक आचार्यों ने किया है । अनुगुण के सम्बन्ध में जयदेव तथा अप्पय्य दीक्षित के मत का ही समर्थन होता रहा। उसके किसी नवीन स्वभाव की कल्पना नहीं हुई। पूर्वरूप
पूर्वरूप के दो रूपों की प्रथम-कल्पना जयदेव ने की। एक में वस्तु के पुनः अपने गुण को प्राप्त करने की धारणा व्यक्त की गयी तथा दूसरे रूप में वस्तु के नष्ट रूप की पुनः प्राप्ति पर बल दिया गया। तद्गुण में वस्तु अपने गुण का त्याग कर अन्य वस्तु का गुण ग्रहण करती है । इस स्थिति के उपरान्त यदि वस्तु के पुनः अपने गुण को प्राप्त करने का वर्णन होता है तो पूर्वरूप का एक रूप माना जाता है । उदाहरण में एक वस्तु का किसी वस्तु के सम्पर्क में आने पर उसके गुण को ग्रहण कर लेने के उपरान्त अपने सदृश उत्कृष्ट गुण वाली अन्य वस्तु के सम्पर्क के कारण पुनः अपने गुण को प्राप्त करने का वर्णन आया है। उदाहरणार्थ, सूर्य के कृष्ण वर्ण के घोड़े अरुण के सम्पर्क से लाल होकर पुनः पर्वत की नीलमणियों की कान्ति से अपना पूर्व गुण ( नील वर्ण) प्राप्त कर रहा है। यह वस्तुतः तद्गुण का ही विशिष्ट रूप है, जहां वस्तु एक बार एक वस्तु का और फिर दूसरी बार दूसरी वस्तु का गुण ग्रहण करती है। पूर्वरूप के दूसरे रूप को परिभाषित करते हुए अप्पय्य दीक्षित ने कहा है कि वस्तु के विकृत या नष्ट होने पर भी पूर्वावस्था की अनुवृत्ति अर्थात् पुनः प्राप्ति पूर्वरूप है। उदाहरणार्थ, दीपक के बुझ जाने पर भी नायिका के आभूषणों के रत्न से प्रकाश फैलने का वर्णन पूर्वरूप का दूसरा रूप होगा।'
१. पुनः स्वगुणसंप्राप्तिः पूर्वरूपमुदाहृतम् ।
X X X X पूर्वावस्थानुवृत्तिश्च विकृते सति वस्तुनि ।
-अप्पय्य दी०, कुवलयानन्द, १४२-४३