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________________ ५६८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण निन्दा के व्याज से (अर्थात् दोष दिखाते हुए) स्तुति करना या गुण बताना एक ही है। किन्तु, व्याजस्तुति और लेश का उक्त स्वरूप अभिन्न नहीं। दोनों की उक्तिभङ्गी में भेद होता है और उस अलग-अलग उक्तिभङ्गियों में अलगअलग चमत्कार है। अतः, दोनों को एक नहीं माना जा सकता। अप्पय्य दीक्षित ने लेश के गुण में दोषत्व तथा दोष में गुणत्व-प्रकल्पन-रूप को स्वीकार करने पर भी व्याजस्तुति तथा उसके दूसरे रूप-व्याज निन्दा को लेश से स्वतन्त्र अलङ्कार माना है। मम्मट ने रुद्रट के हेतु का अलङ्कारस्व अस्वीकार कर काव्यलिङ्ग में ही हेतु का चमत्कार स्वीकार किया है। उन्होंने सूक्ष्म के सम्बन्ध में दण्डी आदि की ही धारणा को स्वीकार किया है। लेश अलङ्कार की सत्ता उन्हें मान्य नहीं। प्रकट हो गये रूप को व्याज से छिपाने में व्याजोक्ति का लक्षण मान लेने के कारण ही सम्भवतः उन्हें लेश के स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना की आवश्यकता नहीं जान पड़ी होगी। लेश के सम्बन्ध में जो दूसरी धारणा प्रचलित थी और जिसकी ओर दण्डी ने निर्देश किया था, वह धारणा व्याजस्तुति के रूप में मम्मट के समय तक स्वीकृत हो गयी थी। इस प्रकार मम्मट के काल तक लेश-विषयक दो प्रकार की प्राचीन मान्यताएं क्रमशः व्याजोक्ति तथा व्याजस्तुति को जन्म देकर स्वयं लुप्तप्राय हो गयी थीं। प्रस्तुत मलङ्कारों के सम्बन्ध में रुय्यक की धारणा मम्मट से मिलती-जुलती ही है। ___ विश्वनाथ ने हेतु अलङ्कार की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार कर उसे रुद्रट की मान्यता के अनुसार परिभाषित किया है। उनकी सूक्ष्म-धारणा दण्डी आदि की धारणा से अभिन्न है । ___ अप्पय्य दीक्षित ने फिर से लेश का अलङ्कार के रूप में अस्तित्व स्वीकार किया। दण्डी-कृत लेश-परिभाषा के आधार पर व्याजोक्ति कल्पित हुई, उनके द्वारा निर्दिष्ट लेश-लक्षण व्याजस्तुति के लक्षण के रूप में गृहीत हुआ। भब रुद्रट की लेश-परिभाषा 'गुण में दोषत्व तथा दोष में गुणत्व की कल्पना' ही बच रही थी। अप्पय्य दीक्षित ने लेश की यही परिभाषा स्वीकार की। १. द्रष्टव्य-मम्मट, काव्यप्रकाश १०, १८६ २. अभेदेनाभिधा हेतुहे तो तुमता सह ।-विश्वनाथ, साहित्यदर्पण,१०,८३ ३. वही, १०, ११६ ४. लेशः स्याद्दोषगुणयोर्गुणदोषत्वकल्पनम् । - अप्पय्यदी• कुवलया० १३८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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