________________
अलङ्कारों का स्वरूप - विकास
[ ५४१* विशिष्ट है । यह अर्थव्यक्ति गुण से भी इस दृष्टि से स्वतन्त्र है कि जहाँ अर्थव्यक्ति में वस्तु के सिद्ध या सार्वकालिक स्वरूप का स्फुट वर्णन होता है, बहाँ स्वभावोक्ति में अवस्था - विशेष में जायमान वस्तु का स्फुट वर्णन होता है । अलङ्कार्य तथा गुण से किञ्चित् विशिष्ट स्वभाव का होने के कारण ही प्रस्तुत अलङ्कार कुन्तक के तर्क- कुठार से खण्डित नहीं हुआ । कुन्तक के बाद भी उसे अलङ्कार - शास्त्र की सुदीर्घ परम्परा में काव्य के अलङ्कार - विशेष के रूप में स्वीकृति मिलती रही। डॉ० नगेन्द्र की यह मान्यता तर्कपूर्ण है कि स्वभावोक्ति में भी विशिष्टता का सद्भाव रहता है । वक्रता या विशिष्टता के सद्भाव के कारण स्वभावोक्ति अलङ्कार है ।' स्वभावोक्ति प्रकृत कथन या लोक- वार्त्ता से निश्चय ही भिन्न है । अतः, उसे अलङ्कार मानने में कोई अनुपपत्ति नहीं ।
समुच्चय
रुद्रट ने सर्वप्रथम समुच्चय अलङ्कार की उद्भावना कर एकत्र अनेक बस्तुओं का एक साथ सद्भाव - कथन इसका लक्षण माना । उनके अनुसार एक माधार में अनेक सुखावह आदि वस्तुओं का वर्णन समुच्चय है । रुद्रट के ' टीकाकार नमिसाधु ने सुखावह के साथ प्रयुक्त 'आदि' शब्द से दु:खावह का
प्राय माना है । इस तरह एक आधार में अनेक सुखद अथवा अनेक दुःखद बस्तुओं का वर्णन समुच्चय अलङ्कार का सामान्य लक्षण होगा । अनेक सुखावह तथा दुःखावह वस्तुओं का भी एक साथ एकत्र वर्णन हो सकता है । इन तीनों स्थितियों के आधार पर समुच्चय के तीन प्रकार स्वीकार किये गये हैं(क) अनेक सुन्दर पदार्थों का एकत्र योग वर्णन, ( ख ) अनेक असुन्दर वस्तुओं का एकत्र योग वर्णन तथा ( ग ) अनेक सुन्दर और असुन्दर वस्तुओं के एकत्र योग का वर्णन । औपम्य गर्भ समुच्चय के सम्बन्ध में कहा गया है कि इसमें अनेक उपमानोपमेय-भूत अर्थ एक क्रिया आदि से सम्बद्ध रहते हैं ।
भोज ने समुच्चय की इस मूल धारणा को स्वीकार कर भी उसे कुछ. नवीन रूप से परिभाषित किया है । उनके अनुसार अनेक द्रव्य, क्रिया, गुण आदि का एकत्र क्रिया, द्रव्य, गुण आदि में निवेश समुच्चय है । 3 इस प्रकार
१. हिन्दी वक्रोक्ति जी० की भूमिका पृ० १३८
२. द्रष्टव्य - रुद्रट, काव्यालं० ७, १६, २७ तथा ८, १०३
३. द्रव्य क्रियागुणादीनां क्रियाद्रव्यगुणादिषु ।
निवेशनमनेकेषामेकतः स्यात्समुच्चयः ॥ - भोज, सरस्वतीकण्ठा० ४, ६०