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________________ ५३४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण रुद्रट की तरह मम्मट ने भी इस अलङ्कार का उद्देश्य वर्णनीय अर्थ की स्तुति या उसका उत्कर्ष-प्रतिपादन माना है। वर्ण्य से अन्य का हीनता-बोध, जो उसे वर्ण्य का विरोधी बनाता है, मम्मट को भी मान्य है। इस अंश में रुद्रट से सहमत होकर भी मम्मट ने यह कल्पना की है कि वर्ण्य से अपने में गुण की हीनता की अनुभूति से अपमान का प्रतिशोध तो विरोधी लेना चाहता है; पर वर्ण्य से प्रतिशोध लेने में असमर्थ होने पर वह उसके आश्रित का तिरस्कार करता है। ऐसे वर्णन के स्थल में प्रत्यनीक अलङ्कार होता है। प्रत्यनीक शब्द सैन्य-प्रतिनिधि का बोधक है। जैसे कोई अपने प्रतिद्वन्द्वी से प्रतिशोध लेने में असमर्थ होकर उसके आश्रित या प्रतिनिधि का तिरस्कार कर प्रतिशोध लेता हो, वैसे ही प्रत्यनीक अलङ्कार में वर्ण्य से प्रतिशोध लेने में अशक्त विरोधी के द्वारा उसके आश्रित का तिरस्कार वर्णित होता है। इस वर्णन से वर्ण्य की अप्रतिभटता व्यञ्जित होती है। मम्मट की प्रत्यनीक-परिभाषा इस प्रकार है :-प्रतिपक्ष के उत्कर्ष-साधन के लिए जहाँ किसी के द्वारा उसके प्रतिकार में असमर्थ होने पर उसके सम्बन्धी का तिरस्कार किया जाना वणित हो, वहां प्रत्यनीक अलङ्कार होता है।' रुय्यक ने प्रत्यनीक का यही स्वरूप सूत्रित किया है। मम्मट और रुय्यक ने प्रत्यनीक-परिभाषा में उपमानोपमेय. भाव का उल्लेख नहीं किया। प्रबल शत्र के प्रतिकार में असमर्थ होकर किसी के द्वारा उस शत्र के आश्रित या उसके सदृश अन्य का तिरस्कार किया जाना प्रत्यनीक-विधान के लिए पर्याप्त माना गया । विश्वनाथ, विद्यानाथ, अप्पय्य दीक्षित, नरसिंह कवि आदि ने मम्मट की प्रत्यनीक-धारणा को ही स्वीकार किया है। विद्यानाथ ने इसे लोकन्याय पर आधृत अलङ्कार कहा है। उन्होंने प्रतिपक्ष के सम्बन्धी' का अर्थ उसके 'सदृश' मानकर यह अर्थ किया है कि प्रत्यनीक में बलवान शत्र के प्रतिकार में असमर्थ होकर उसका विपक्षी उसके सदृश अन्य का तिरस्कार करता है। पण्डितराज जगन्नाथ ने भी मम्मट आदि के मतानुसार ही प्रत्यनीक १. प्रतिपक्षमशक्त न प्रतिकतु तिरस्क्रिया। ___या तदीयस्य तत्स्तुत्य प्रत्यनीकं तदुच्यते ।।-मम्मट, काव्यप्र० १०,१९६. २. प्रतिपक्षप्रतीकाराशक्तौ तदीयतिरस्कारः प्रत्यनीकम् । ___-रुय्यक, अलं० सर्वस्व, सूत्र सं०६८ ३. अत्र सादृश्यहेतुकं तदीयत्वमित्यलंकारत्वम् । -विद्यानाथ, प्रतापरुद्रयशोभूषण पृ० ४६३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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