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________________ ४८४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण के अनुसार दो वस्तुओं का सम्भव या असम्भव सम्बन्ध जहाँ विम्बप्रतिबिम्ब की प्रतीति कराता हो, वहाँ निदर्शना अलङ्कार होता है ।' बिम्बप्रतिबिम्ब में दो वस्तुओं के बीच सादृश्य का अनुभव वाञ्छनीय होता है । इससे स्पष्ट है कि रुय्यक उद्भट की ही तरह निदर्शना को सादृश्यमूलक मानते हैं । विश्वनाथ ने रुय्यक की तरह वस्तु सम्बन्ध के सम्भव होने तथा असम्भव होने पर दोनों के बीच बिम्बप्रतिबिम्ब की कल्पना को निदर्शना का स्वरूप माना है । अप्पय्य दीक्षित ने निदर्शना के सम्बन्ध में पूर्वप्रचलित प्रायः सभी मान्यताओं को स्वीकार कर उन्हें पृथक्-पृथक् निदर्शना-प्रकार के रूप में परिभाषित किया है | २ पण्डितराज जगन्नाथ की निदर्शना - परिभाषा रुय्यक की परिभाषा से मिलती-जुलती है । 3 विभिन्न आचार्यों की निदर्शना धारणा का सार निम्नलिखित है -- (क) एक क्रिया का दूसरे विशिष्ट अर्थ के निदर्शन के रूप में वर्णन निदर्शना है । क्रिया सत् और असत्; दोनों प्रकार के अर्थों का निदर्शन हो सकती है । (ख) दो वस्तुओं के सम्बन्ध के असम्भव होने पर उनके बीच उपमानोप-भाव या बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव की कल्पना निदर्शना है । (ग) दो वस्तुओं के सम्भव सम्बन्ध होने पर भी उनमें उपमानोपमेय या बिम्बप्रतिबिम्ब की कल्पना में कुछ आचार्य निदर्शना मानते हैं । निदर्शना-भेद निदर्शना के एकवाक्यगत तथा अनेक वाक्यगत होने के आधार पर क्रमश: उसके पदार्थवृत्ति या एकत्राक्यगा भेद और वाक्यार्थवृत्ति या अनेकवाक्यगा भेद माने गये हैं । फिर माला और शृङ्खला भेद से निदर्शना के दो और भेद कल्पित हैं । साधारण धर्म की अनुगामिता ( उपमानोपमेय-भाव ), वस्तुप्रतिवस्तुभाव एवं बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव के आधार पर निदर्शना के तीन भेदों की कल्पना की गयी है । वस्तुसम्बन्ध के सम्भव तथा असम्भव होने के आधार पर निदर्शना के दो भेद किये गये हैं । असम्भवद्वस्तुसम्बन्धा - निदर्शना में वस्तु १. द्रष्टव्य, विश्वनाथ, साहित्यद० १०, ७० २. द्रष्टव्य, अप्पय्य दीक्षित, कुवलया० ५३, ५६ ३. उपात्तयोरर्थयोरार्थाभेद औपम्यपर्यवसायी निदर्शना । —जगन्नाथ, रसगङ्गाधर पृ० ५३६ तुलनीय रुय्यक, अलङ्कार सू० २७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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