________________
४८२ ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
उपदर्शन होता है, वहाँ निदर्शना नामक अलङ्कार होता है ।" अभिप्राय यह कि किसी क्रिया के वर्णन से अन्य विशिष्ट अर्थ का निदर्शन निदर्शना है । उदाहरणार्थ, सूर्य का कान्तिहीन होकर अस्तोन्मुख होना अभ्युदय के बाद पतन का बोध कराता है । इसी तरह प्रभात काल में सूर्य का उदित होना पराभव के उपरान्त अभ्युदय की सूचना देता है । ऐसे कथन में – किसी विशेष क्रिया से विशिष्ट अर्थावबोध के कथन में - भामह के अनुसार निदर्शना होती है ।
आचार्य दण्डी ने निदर्शना को कुछ नवीन रूप में परिभाषित किया है । उनके अनुसार किसी कार्यान्तर में प्रवृत्त होने पर उसके अनुरूप किसी अच्छे या बुरे फल का निदर्शन निदर्शना अलङ्कार का स्वरूप है । २ स्पष्टतः, दण्डी की निदर्शन - परिभाषा में एक कार्य से अन्य अर्थ के निदर्शन की धारणा भामह की निदर्शना धारणा के समान है; पर दण्डी ने सत् एवं असत् ( अच्छे तथा बुरे ) फल के निदर्शन का तत्त्व निदर्शना में जोड़ दिया है । तात्त्विक दृष्टि से दण्डी की निदर्शना का स्वरूप भामह - कल्पित निदर्शना के स्वरूप से भिन्न नहीं । एक क्रिया से अन्य कार्य का निदर्शन निदर्शना में दोनों आचार्यों को अभीष्ट है । एक क्रिया अपने समान उत्कृष्ट या निकृष्ट अर्थ का निदर्शन बन सकती है । भामह ने निदर्शना का जो उदाहरण दिया था, वह असत् - फल निबन्धना निदर्शना का उदाहरण था, जिसमें अस्तोन्मुख सूर्य के निस्तेज होकर उदय के उपरान्त पतन की सूचना देने का वर्णन है । भामह की निदर्शना के सामान्य स्वरूप में सत्फल - निबन्धना की भी सम्भावना निहित थी । दण्ड ने उसके दोनों रूपों का स्पष्ट विवेचन किया । यही उनका श्रेय है ।
उद्भट ने अपने पूर्ववर्ती भामह तथा दण्डी; दोनों की निदर्शना - परिभाषा को अस्वीकार कर उसे नवीन रूप में परिभाषित किया है । उनकी मान्यता है कि 'जहाँ दो वस्तुओं का सम्बन्ध - चाहे वह उपपन्न हो या अनुपपन्न - उपमानोपमेय-भाव में पर्यवसित होता है - वहाँ निदर्शना होती है ।'
3
१. क्रिययैव विशिष्टस्य तदर्थस्योपदर्शनात् ।
ज्ञेया निदर्शना नाम यथेववतिभिर्विना ॥ - भामह, काव्यालं० ३,३३ २. अर्थान्तरप्रवृत्त ेन किञ्चित् तत्सदृशं फलम् । सदसद्वा निदर्श्यत यदि तत्स्यान्निदर्शनम् ॥
- दण्डी, काव्यादेश, २,३४८
३, अभवन्वस्तुसम्बन्धो भवन्वा यत्र कल्पयेत् । उपमानोपमेयत्वं कथ्यते सा निदर्शना ।।
- उद्भट, काव्यालं ० सारसं ० ५,१८