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अलङ्कारों का स्वरूप-विकास
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रुय्यक की दृष्टान्त - परिभाषा मम्मट की उक्त परिभाषा से अभिन्न है । उन्होंने उपमान और उपमेय के साथ साधारण धर्म का भी बिम्बप्रतिबिम्बतया निर्देश दृष्टान्त का स्वरूप माना है । इस प्रकार धर्मी और धर्म; दोनों को लेकर दृष्टान्त का विधान मम्मट, रुय्यक आदि को अभीष्ट है ।
परवर्ती आचार्यों ने दृष्टान्त का यही स्वरूप स्वीकार किया है । पण्डित - राज जगन्नाथ ने इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि दृष्टान्त में धर्म के साथ धर्मी का भी दो बार उपादान होता है । आचार्यों की दृष्टान्तविषयक मान्यता का निष्कर्ष निम्नलिखित है
(क) दो वस्तुओं में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव दिखाना दृष्टान्त अलङ्कार है 1 (ख) बिम्बप्रतिबिम्ब - भाव उपमान, उपमेय और धर्म का भी होता है । (ग) बिम्बप्रतिबिम्ब का कारण सादृश्य होता है । तत्त्वतः भिन्न धर्म के होने पर भी दोनों के सादृश्य के के लिए दो बार उपादान होता है ।
दूसरे शब्दों में, इसमें कारण अभेद - प्रत्यायन
(घ) साधर्म्य और वैधर्म्य; दोनों से बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव हो सकता है । दृष्टान्त भेद
दृष्टान्त के अधिक भेदोपभेद की कल्पना नहीं की गयी है । धर्म तथा धर्मी के बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव- प्रदर्शन के आधार पर इसके दो भेद माने जा सकते हैं । बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव साधर्म्य तथा वैधर्म्य; दोनों से होता है । इस प्रकार साधर्म्य और वैधर्म्य के भेद से उक्त दो भेद के चार उपभेद हो जाते हैं ।
निदर्शना
सर्वप्रथम आचार्य भामह के 'काव्यालङ्कार' में निदर्शना अलङ्कार का स्वरूप - निरूपण मिलता है । भामह ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है कि 'जहाँ त्रिया के द्वारा ही यथा, इव आदि के प्रयोग के बिना विशिष्ट अर्थ का
१. तस्यापि बिम्बप्रतिबिम्बतया निर्दशे दृष्टान्तः । तथा — तस्यापि न केवलमुपमानोपमेययाः । तच्छब्देन सामान्यलक्षणो धर्मः प्रत्यवमृष्टः । — रुय्यक, अलङ्कार सर्वस्व सूत्र २६ तथा उसकी वृत्ति पृ० ७८ २. द्रष्टव्य, जगन्नाथ, रसगंगा० पृ० ५३२-३३
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