SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ४७५. वर्णन से अन्य का उत्कर्ष सूचित करने में वर्णन-पद्धति-मात्र का भेद है-दोनों का फल समान है। ____ आचार्य उद्भट ने व्यतिरेक को परिभाषित करते हुए कहा है कि 'उपमान और उपमेय का विशेषापादन अर्थात् उत्कर्ष-वर्णन व्यतिरेक है।'' तिलक ने 'विवृति' में इस कथन की व्याख्या करते हुए उद्भट की व्यतिरेक-विषयक मान्यता को भामह की तद्विषयक मान्यता से अभिन्न सिद्ध करने का आयास किया है। उनके अनुसार उपमेय का उत्कर्ष तथा उपमान का अपकर्ष उद्भटसम्मत व्यतिरेक-लक्षण है। तिलक की यह व्याख्या पूर्वाग्रहपूर्ण जान पड़ती है। 'उपमानोपमेययोः विशेषापादनम्', इस कथन से 'उपमान का अपकर्ष और उपमेय का उत्कर्ष' अर्थ निकालना कल्पना-विलास-सा लगता है, जिस पर भामह की मान्यता की छाप स्पष्ट है। इन्दुराज ने लघुवृत्ति-टीका में उद्भट के उक्त कथन का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि 'उसमें (व्यतिरेक में) उपमान से उपमेय का अथवा उपमेय से उपमान का आधिक्य वर्णित होता है; इसलिए उसका व्यतिरेक व्यपदेश है ।'स्पष्टतः उद्भट की व्यतिरेक-. धारणा पर आचार्य दण्डी का पुष्कल प्रभाव है। वामन ने व्यतिरेक का केवल एक रूप-'उपमान से उपमेय का गुणाधिक्य-वर्णन-रूप'—स्वीकार किया है।४ रुद्रट ने स्पष्ट शब्दों में व्यतिरेक के दो रूपों का उल्लेख किया है। एकत्र उन्होंने व्यतिरेक में उपमेय के गुण के प्रतिपन्थी दोष का उपमान में उल्लेख वाञ्छनीय माना है और अपरत्र उसमें उपमान के गुण के प्रतिपन्थी दोष का उपमेय में निर्देश अपेक्षित बताया है।५ पहला उपमेयाधिक्य-वर्णन-रूप व्यतिरेक है और दूसरा उपमानाधिक्य१. विशेषापादनं यत्स्यादुपमानोपमेययोः । -उद्भट, का० अ० सा० सं० २,१२ २. स च उपमेयोत्कर्षापमाननिकर्षरूपव्यतिरेकनिमित्तस्योपादाने उत्कर्ष-. निकर्षो भयनिमित्तानां पर्यायेणानुपाढाने च भवतीति चतुर्भदः ।। -वही, विवृति, पृ० २५ ३. तत्र ह्य पमानादुपमेयस्योपमेयादुपमानस्य वा केनचिद् विशेषणातिरेक' __ आधिक्यं ख्याप्यते तस्माद् व्यतिरेकः।-लघुवृत्ति, पृ० ३५ ४. उपमेयस्य गुणातिरेकित्वं व्यतिरेकः ।-वामन का० अ० सू० ४,३,२२ तथा वृत्ति-उपमेयस्य गुणातिरेकित्वं गुणाधिक्यं यद् अर्थादुपमानात् स व्यतिरेकः। ५. यो गुण उपमेये स्यात् तत्प्रतिपन्थी च दोष उपमाने । x X उपमाने वा तत्प्रतिपन्थी च दोष उपमेये। -रुद्रट, काव्यालं. ७,८६-८६:
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy