SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अपह्न ति के भेदोपभेद अपह्नति के अनेक भेदोपभेदों की कल्पना तत्तद् आधारों पर की गयी है। अपह्नति के स्वरूप के दो प्रमुख. विधायक-तत्त्वों-अपह्नव तथा अन्यारोप–के पौर्वापर्य के आधार पर अपह्न ति के दो भेद कल्पित हुए(क) निषेधपूर्वक आरोप तथा (ख) आरोपपूर्वक निषेध । कहीं निषेधवाक्य पहले रहता है और विधिवाक्य पोछे; पर इसके विपरीत, कहीं विधि-वाक्य ही पहले रह सकता है और निषेध-वाक्य पीछे । इस प्रकार उक्त दो भेद अपह्न ति के हो जाते हैं। विधिवाक्य और निषेधवाक्य जहाँ अलग-अलग न रहें और छल, व्याज, नत्र आदि के प्रयोग के द्वारा एक ही वाक्य से अपह्नव का तत्त्व निर्दिष्ट होता हो और केवल आरोप का विधान होता हो, वह अपह्न ति का तीसरा भेद है ।' शोभाकर ने अपह्नव के शाब्द एवं आर्थ होने के आधार पर अपह्नति के दो भेद स्वीकार किये हैं। उनके अनुसार जहाँ नत्र आदि के द्वारा साक्षात् निषेध होता है, वहाँ अपह्नति शाब्दी होती है और जहाँ छल, व्याज आदि शब्दों का प्रयोग कर प्रकारान्तर से निषेध होता है, वहाँ आर्थी अपह्न ति होती है।२ __ हम देख चुके हैं कि अपह्नति की सादृश्यमूलकता तथा सादृश्येतरमूलकता को लेकर दो मत रहे हैं। दण्डी ने उसके दोनों स्वरूपों को स्वीकृति दी थीएक को उपमा-भेद के रूप में तथा दूसरे को शुद्ध अपह्नति के रूप में । भोज ने इस आधार पर अपह्नति के दो भेद स्वीकार किये-औपम्यवती और अनौपम्या। सादृश्य के वाच्य तथा प्रतीयमान होने के आधार पर अपद्धति के पुनः दो उपभेद माने गये । अनौपम्या के दो उपभेद कल्पित हुए-पूर्व एवं अपूर्व । जयदेव ने अपह्नति के पर्यस्तापह्न ति, भ्रान्तापह्न ति, छेकापह्न ति तथा कैतवापत ति भेदों का निरूपण किया। पण्डितराज जनन्नाथ ने पर्यस्ता १. द्रष्टव्य, रुय्यक, अलङ्कार-सर्वस्व, पृ. ४६ २. द्रष्टव्य, शोभाकरकृत अलङ्कार-रत्नाकर, पृ० ४० ३. द्रष्टव्य, भोजकृत सरस्वतीकण्ठाभरण ४, ४१-४३ ४. द्रष्टव्य, जयदेवकृत चन्द्रालोक ५, २५-२६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy