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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
उक्त तालिका को देखने से सजीवनीकार के मतानुसार उत्प्रेक्षा के भेदोपभेद स्पष्ट हो जाते हैं। उनके अनुसार उत्प्रेक्षा के मुख्य दो भेद हैं-वाच्या और गम्या । वाच्या केछियानबे भेद हैं। उसके प्रथम चार भेद होते हैं-जाति, गुण, क्रिया तथा द्रव्य की उत्प्रेक्षा। इन चारों में से प्रत्येक के चौबीस उपभेद हो जाते हैं । इन सब के भावाभिमान तथा अभावाभिमान दो भेद होते हैं, फिर दोनों के गुणनिमित्ता तथा क्रियानिमित्ता भेद से चार प्रकार हो जाते हैं । पुनः चारो उपात्तनिमित्ता और अनुपात्तनिमित्ता भेद से आठ प्रकार के हो जाते हैं । इन आठो के तीन-तीन-भेद हेतु, स्वरूप तथा फल की उत्प्रेक्षा की दृष्टि से हो जाते हैं। इस प्रकार वाच्योत्प्रेक्षा के जाति, गुण, क्रिया एवं द्रव्य-भेदों में से प्रत्येक के चौबीस-चौबीस भेद होते हैं; किन्तु द्रव्योत्प्रक्षा के आठ ही भेद लोग मानते हैं, चूंकि उसकी स्वरूप-मात्र में ही उत्प्रेक्षा सम्भव है, हेतु और फल में नहीं। अतः, स्थूल दृष्टि से वाच्योत्प्रेक्षा के अस्सी भेद ही मान्य हुए हैं। प्रतीयमाना उत्प्रेक्षा के भेदों का विभाजन भी इसी पद्धति पर होता है; पर उसमें केवल उपात्तनिमित्ता के अड़तालीस भेदों का सद्भाव मान्य है। अनुपात्तनिमित्ता प्रतीयमाना सम्भव ही नहीं। प्रतीयमाना में स्वरूपोत्प्रेक्षा नहीं होती। अतः, स्वरूपोत्प्रेक्षा के सोलह भेदों को कम कर देने से प्रतीमाना उत्प्रेक्षा के केवल बत्तीस भेद बच रहते हैं।
जयदेव और अप्पय्य दीक्षित ने वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा तथा फलोत्प्रेक्षाइन उत्प्रेक्षा-भेदों का सद्भाव स्वीकार कर प्रत्येक के इवादि पद से वाच्य होने पर वाच्या तथा उसके अभाव में गूढ़ा या गम्या; दो भेद माने हैं। विद्यानाथ ने रुय्यक के उत्प्रेक्षा-जाल से प्रमुख बत्तीस भेद लेकर उनका विवेचन किया है। उनके अनुसार वाच्या और गम्या उत्प्रेक्षा में से प्रत्येक जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य-भेदों से चार-चार प्रकार की होती है । पुनः, भाव एवं अभाव के भेद से उनके आठ-आठ भेद हो जाते हैं। गुणनिमित्ता और क्रियानिमित्ता होने से वे सोलह-सोलह प्रकार की होती हैं। इस प्रकार सोलह वाच्या और उतनी ही गम्या उत्प्रेक्षा होती है। विश्वनाथ ने भी उत्प्रेक्षा के बत्तीस भेद ही माने थे।
उत्प्रेक्ष्य वस्तु आदि के आधार पर किये गये उक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त श्लिष्टशब्दनिमित्तकोत्प्रेक्षा, उपमोपक्रमोत्प्रेक्षा, सापह्नवोत्प्रेक्षा आदि उत्प्रेक्षा-भेदों की भी कल्पना कुछ आचार्यों ने की है पर इन्हें उत्प्रेक्षा