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________________ ४५८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण होने तथा उत्कर्ष के लिए अप्रकृत के गुण, क्रिया आदि के प्रकृत में योग होने में उत्प्रेक्षा का सद्भाव माना। यह उत्प्रेक्षा सम्भावना-रूप होती है। उद्भट ने इस तथ्य का भी स्पष्टीकरण किया कि क्रिया के साथ प्रयुक्त 'इव' आदि सम्भावना व्यक्त करते हैं; अतः वहाँ उत्प्रेक्षा होती है।' दण्डी भी इस तथ्य पर विचार कर चुके थे। वामन ने अतिशय के लिए अतद्रूप का अन्यथा अध्यवसान उत्प्रेक्षा का लक्षण माना।२ उत्प्रेक्षा की परिभाषा में विशेष नवीनता नहीं होने पर भी 'अध्यवसान' शब्द का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है। 'अतद्रूप वस्तु में अतिशय के लिए तद्रूपतया अध्यवसान' आरोप, लक्षणा आदि के परिहार के लिए प्रयुक्त है। आरोप आदि का परिहार कर यह अध्यवसान सम्भावना-लक्षण होता है । 3 'अतिशयार्थ' से वामन का तात्पर्य भ्रान्तिज्ञान-निवृत्ति का है। उद्भट की उत्प्रेक्षा-परिभाषा में प्रयुक्त 'अतिशय' का अर्थ तिलक ने 'उत्कर्ष' माना था। इस प्रकार सातिशय की धारणा उत्प्रेक्षा के स्वरूप में आरम्भ से ही पायी जाती है। रुद्रट ने उत्प्रेक्षा के दो रूप स्वीकार किये हैं। एक को उन्होंने औपम्यगर्भ अलङ्कार-वर्ग में रखा है और दूसरे को अतिशयगर्भ अलङ्कार-वर्ग में । हम देख चुके हैं कि आरम्भ से ही उपमेय में उपमान की सम्भावना पर उत्प्रेक्षा-लक्षण में बल दिया जाता रहा है। उद्भट, वामन आदि आचार्यों १. साम्यरूपाविवक्षायां वाच्येवाद्यात्मभिः पदैः । अतद्गुणक्रियायोगादुत्प्रेक्षाऽतिशयान्विता ॥x x सम्भावनेयम् । -उद्भट, काव्यालं० सारसं० ३,४-५ २. अतद्र पस्यान्यथाध्यवसानमतिशयार्थमुत्प्रेक्षा। -वामन, काव्यालं० सू० ४,३,९ ३. अतत्स्वभावस्य वस्तुनस्तत्तद्गुणयोगात्तत्तद्भावकल्पनमध्यारोपः; यत्र रूपकादिस्वरूपलाभः। यत्तु सादृश्ये सत्येकेन वस्तुना वस्त्वन्तरस्य प्रतिपादनमध्यवसायरूपं सा सादृश्यमूला लक्षणा; यत्र वक्रोक्तिव्यपदेशः । यत् पुनस्तद्र पे वस्तुन्यतिशयमाधातु तद्र पतयाऽध्यवसानं, सोऽयमध्यवसायः सम्भावनालक्षण उत्प्रेक्षेति विवेकः । -वामन, काव्यालं० सू०, कामधेनु-टीका, पृ० १३१ ४. अतिशयार्थमिति-भ्रान्तिज्ञाननिवृत्त्यर्थम् ।। -वामन, काव्यालं० सू० पृ० १३१ ५. अतिशयेति । उत्कर्षपर्यवसायिनीत्यर्थः।। -उद्भट, काव्यालं० सारसं० की विवृति पृ० ३०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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